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चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे है न्यू एडवांसमेंट्स। जयपुर में होता है असाध्य और कठिन रोगों का आधुनिकतम और नव सृजित तकनीकों से इलाज ।
दवा उद्योग / medicine trade

diclofenec दवा के सिर्फ “मल्टीडोज” पैकिंग पर रोक लगाई गई थी।इंजेक्शन केवल एक, दो और पांच एमएल की पैकिंग में बनाया जा सकता है।

पेन किलर की जो पैकिंग आठ साल पहले बैन थी , वह पिछले आठ साल से बनाई जा रही थी। मामला सामने आने पर हुई कार्रवाई।
राजस्थान के औषधि नियंत्रक, जयपुर सेकंड राजाराम शर्मा ने कहा कि वेटनरी उपयोग रोकने के लिए इस दवा के सिर्फ “मल्टीडोज” पैकिंग पर रोक लगाई गई थी। यानि कि यह इंजेक्शन केवल एक, दो और पांच एमएल की पैकिंग में बनाया जा सकता है। इसकी अनुमति भी फार्मूलेशन कमेटी के प्रस्ताव पर ही जारी होती है। लेकिन गलती से 10 ML की परमिशन जारी हो गई, जिसका पता चलते ही विड्राल भी कर लिया गया है। –

■ 10 एमएल बैन

इंसानों में पेन किलर के तौर पर काम आने वाले इंजेक्शन को जानवरों के लगाने में काम में लिया जाने लगा। डॉक्टरों के अनुसार जानवर को अधिक डोज लगाई जाती है (यानी 10 एमएल के कई इंजेक्शन) तो उनकी मौत भी हो जाती थी।

गौरतलब है कि द ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने पेन किलर की जिस पैकिंग को आठ साल पहले बैन कर दिया था वह राजस्थान में पिछले आठ साल से बनाई जा रही थी। हालांकि मामला पकड़ में आने के बाद औषध विभाग ने गलती को सुधारते हुए अपना आदेश विड्राल कर लिया है आगे से अब इस पैकिंग में यह दवा नहीं बनाई जाएगी। कंपनी को भी निर्देश दे दिए हैं कि दवा को मल्टीडोज के तौर पर ना तो बनाया जाए ना ही बेचा जाए।

मामले के अनुसार रायपुर में डायक्लोफेनिक इंजेक्शन (डिक्लोसोल-Q) की 33 लाख रुपए की 10 एमएल के पैक में खेप पकड़ी गई। अब जबकि यह इंजेक्शन 10 एमएल में बनाना और बेचना प्रतिबंधित है तो इसकी जानकारी जुटाई गई और सामने आया कि सीकर के अजीतगढ़ में GBN फार्मास्युटिकल यह मल्टीडोज बना रहा था। जब कंपनी संचालकों से इस बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि उन्हें ड्रग विभाग से अनुमति है। इस पर छत्तीसगढ़ की टीम भी हतप्रभ रह गई और दस्तावजों की जांच की। दस्तावेजों में विभाग की ओर से 10 एमएल में डिक्लोसोल – Q बनाने की अनुमति दी हुई थी।

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