क्या पाप पुण्य का विचार केवल तीये की बैठक तक वो “मतलब की दुकान। एक दूजे से मिलने की चौपाल
पाप पुण्य का विचार केवल तीये की बैठक तक
वो “मतलब की दुकान। एक दूजे से मिलने की चौपाल
सोच बदलनी होगी
शर्मनाक है तीये की बैठक में लोग अपना नाम बुलवाने के लिए सेट मैटर की बनी चिट्ठियां भेजते हैं। जिंदा लोगों को ठगने वाले कीर्तिलोभी लोग दिवंगत व्यक्ति के साथ भी मजाक करते हैं। इससे भी घिनौने लोग वे हैं, जो नेताओं, अधिकारियों और दूसरे लोगों की आई चिट्ठियों को यहां शान से पढ़वाते हैं!
सोचते है
संसार असार है ।
यह बात तब पता चलती है जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति इस दुनिया से अचानक चला जाता है और उसका सारा “प्रभाव” धरा का धरा रह जाता है । तब ना दौलत काम आती है, ना प्रतिष्ठा और ना ही रसूख । जब राम का बुलावा आ जाता है तो मनुष्य को जाना ही पड़ता है । इस आने और जाने में भी कितनी ही चीजें हैं।
सोच बदलनी होगी
तीये की बैठक पास के पार्क में रखी गई थी । एक किलोमीटर तक गाडियों की पार्किंग हो गई थी । सड़क लगभग जाम हो गई थी फिर भी गाड़ियां आ रही थीं । लोगों का रैला आ रहा था । पार्क खचाखच भर गया था । जगह कम पड़ गई थी । गजब की भीड़ थी । पर एक बात थी कि लोग 50 या इससे अधिक उम्र के ही नजर आ रहे थे ।
तीये की बैठकों में शायद वे ही लोग जाते हैं जिनका तीया पांचा निकट ही होना है । जवान लोगों को धन कमाने से फुरसत कहां है ?
सोच बदलनी होगी
ये मृत्यु भी अजीब सी चीज होती है ना ? लोगों को डरा जाती है कि मुझे भूलो मत । एक न एक दिन मुझे आना है । पर लोग हैं कि मानते नहीं । इस तरह जीते हैं जैसे सदियों तक जिंदा रहेंगे ।
सोच बदलनी होगी
सात पीढीयों की चिंता क्यों करते हैं और पता घड़ी भर का नहीं।
सोच बदलनी होगी
“राम नाम सत्य है , सत्य बोल्यां गत्य है” का उद्घोष होता है और नश्वर शरीर की निरर्थकता का अहसास होता है । मगर शमशान से बाहर निकलते ही लोग “सत्य” को भूल जाते हैं और असत्य में रम जाते हैं ।
यहां पर भी महाभारत का वही श्लोक पढा जा रहा था जो अमूमन सब जगह पढा जाता है
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
सब लोग इसे सैकड़ों बार सुन चुके हैं मगर पंडित हर तीये की बैठक में यह सुनाता है । फिर भी कोई नहीं सुनता है । लोग मोबाइल में “बिजी” रहते हैं । तीये की बैठक में भी मोबाइल बजते रहते हैं । शायद लोग समझते हैं कि सन्नाटे को देखकर कहीं सन्नाटा उन पर हावी ना हो जाये, इसलिए मोबाइल की घंटी चालू रखते हैं।
सोच बदलनी होगी
तीये की बैठक में भी बड़ी अजीब अजीब दृश्य होते हैं।
लोग एक दूसरे से ऐसे मिलते नजर आएंगे जैसे तीये की बैठक कोई मरने वाले और उनके परिवार जनों को दुख प्रकट करने की बैठक नहीं! यह तो आपस में एक दूसरे को चेहरा दिखाने – हाथ मिलाने और हाल-चाल पूछने की बैठक है।
एक सज्जन कमोडिटी बाजार के खिलाड़ी थे शायद । लगातार फोन पर कुछ खरीदने बेचने के लिए ऑर्डर दे रहे थे ।
मैंने कहा भाईसाहब, तीये की बैठक तो कभी और छुट्टी के दिन रखवा लेंगे, आप तो अपना धंधा करते रहो । वह खीसें निपोर कर रह गये ।
इतने में पंडित शोक संदेश पढने लग गया । सांसद, विधायक, पार्षद से लेकर ब्लॉक प्रमुख, गली प्रमुख, फलाना प्रमुख, जीते – हारे हुए प्रत्याशी सभी ने शोक संदेश भेजे थे । आज शोक संदेशों को सुनकर पता चला कि शहर में कितने अग्रवाल समाज हैं और उनके पदाधिकारी कौन कौन हैं ? इनके अलावा लायन्स क्लब, स्वयं सेवी संगठन, अनाथालय, वृद्धाश्रम, नारी निकेतन, विकलांग संस्थान, कला संगठनों के यहां से भी शोक संदेश आये थे ।
लगता है कि यह परिवार इन सभी संस्थाओं को थोड़ा बहुत चंदा दिया करते थे या चंदे का आश्वासन, तभी तो इतने शोक संदेश आ गये । आज उन्होंने शोक संदेश भेजकर अपना ऋण चुका दिया या चंदे की अगली किस्त पुख्ता कर ली थी ।
सोचो
अगर ऐसा नहीं होता तो कुछ दिनों पूर्व एक गरीब पड़ोसी के तीये की बैठक में तो बस दो चार शोक संदेश ही आये थे । लोग इसमें भी भेदभाव करते हैं , गजब है ।
सोच बदलनी होगी
तीये की बैठक में जाने का तभी फायदा है जब मुखिया को अपना चेहरा दिख जाये । अगर उन्होंने आपको नहीं देखा तो आपकी हाजिरी कैसे लगेगी ? इसलिए उनकी आंखों में आंखें डालकर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी पड़ती है ।
घर जाने से पहले मंदिर जाना होता है सारी नकारात्मकता मंदिर में छोड़कर आ जाइये और फिर घर जाइए । घर पर गंगाजल के छींटे डालकर शुद्ध होना पड़ता है । यदि गंगाजी में नहा नहीं सके तो क्या हुआ, गंगाजल के छींटों से ही काम चल जाता है ।
पाप पुण्य का विचार केवल तीये की बैठक तक ही
रहता है उसके बाद तो फिर वही “मतलब की दुकान।
संपर्क सूत्र डॉक्टर मान सिंह भांवरिया मो +919672777737