जानें क्या था Zia ul Haq का हुदूद कानून जिसमें महिलाओं को चौराहे पर कोड़े लगाना व अंग भंग करना था जायज
धार्मिक कट्टरता की नींव पर पाकिस्तान का जन्म हुआ था और विभाजन के बाद पाक नेताओं के साथ-साथ सैन्य शासकों ने भी कट्टरपंथी इस्लाम की राह पकड़कर अपनी सियासी जमीन मजबूत की थी। पाकिस्तान में 5 जुलाई को ही जनरल जिया उल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार का तख्तापलट कर सैन्य शासन स्थापित किया था। आज हम आपको Muhammad Zia-ul-Haq की क्रूरता की ऐसी दास्तां बताने वाले हैं, जो उसने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान की महिलाओं के साथ ही बरती थी।
कट्टर इस्लामिक देश चाहता था जिया-उल हक
दुष्कर्म के बदले दुष्कर्म की सजा
1978 से 1985 के बीच Muhammad Zia-ul-Haq ने हर ऐसा कदम उठा, जिससे पाकिस्तान को एक धर्मांध मुल्क बन सके। पाक की अदालतें शरिया कानून से चलने लगीं। जिला उल हक ने पाकिस्तान में सबसे विवादित Hudud अध्यादेश को लागू किया, जिसमें महिलाओं पर काफी सख्ती लागू कर दी गई थी। इस विवादित अध्यादेश में एक नियम यह भी था कि दुष्कर्म के बदले दुष्कर्म की सजा दी जाती थी। किसी की बहन का दुष्कर्म किया होता था और फरियादी भी आरोपी की बहन से दुष्कर्म कर सकता था।
आमदनी से जबरन कटने लगी जकात
बेटियों के नाम पर भी सख्ती
जिया उल हक के शासन के दौरान पाक में बेटियों के नाम को लेकर भी सख्ती लागू कर दी गई थी। बेटियों का नाम भी पैगंबर मुहम्मद के परिवार की औरतों के नाम पर नहीं रख सकते थे।
शिया-सुन्नी मुसलमान में बढ़ी मार-काट
पाकिस्तान में आज जो शिया और सुन्नी के बीच मार-काट मची रहती है, उसकी जड़ को पानी देने का काम जिया-उल हक के शासनकाल में भी किया गया था। तब शियाओं को ‘वाजिब-उल-कत्ल’ ठहराया गया था। इसका मतलब होता था, ऐसे लोग जो मारे जाने लायक है।
हुदूद कानून में ऐसी थी सख्तियां
– साल 1979 में जिला-उल-हक ने पाक में हुदूद अध्यादेश लागू कर दिया था, जिसमें पाक दंड संहिता के कई हिस्सों में बड़ा बदलाव कर दिया गया था।
– इस कानून में जैसे के साथ तैसा वाली प्रवृत्ति बढ़ गई। इसके अलावा कोड़े मारना, अंग भंग करना या दोषी को सरेआम पत्थर मारकर हत्या करने जैसी सजा दी जाने लगी थी।
– महिलाओं को बीच चौराहे पर बेदर्दी से कोड़े लगाए जाते थे।
– काफी विवाद और दुनियाभर में आलोचना के बाद साल 2006 में इस कानून को बदल दिया गया था। साल 2006 में जनरल मुशर्रफ ने महिला संरक्षण कानून के जरिए कानून में संशोधन किया था।