आवारा श्वानों का बधियाकरण कार्य तीन माह से बंद निगम को नहीं मिल रहे पंजीकृत ठेकेदार
जबलपुर। शहर में आवारा श्वानों का खौफ कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। शहर की सड़कों में विचरण करने वाले आवारा श्वान दिन हो या रात, राह चलते लोगों पर झपट रहे हैं। विक्टोरिया अस्पताल में दर्ज आंकड़ों की माने तो शहर में हर दो घंटे में करीब पांच डाग बाइट के मामले सामने आ रहे हैं। श्वानों की बढ़ती संख्या पर रोक लगाने के लिए बधियाकरण (नसबंदी) का कार्य नगर निगम द्वारा करीब 12 वर्षों से कराया जा रहा है। जिसमें तकरीबन तीन करोड़ रुपये से ज्यादा राशि खर्च कर दी गई, फिर भी श्वानों की संख्या कम नहीं हुई है। बल्कि साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। क्योंकि नगर निगम द्वारा अब तक जहां अपंजीकृत संस्थाओं से श्वान (नर-मादा) का बधियाकरण कराया जा रहा था। वहीं अब नए नियम के तहत एनीमल वेलफेयर बोर्ड आफ इंडिया के तहत पंजीयन कराना अनिवार्य कर दिया गया है। जिसके चलते शहर में पिछले तीन माह से श्वानों का बधियाकरण कार्य बंद है। वहीं नगर निगम को ऐसी संस्था भी नहीं मिल पा रही है जो बोर्ड से पंजीकृत हो। यदि ऐसे हाल रहे तो आने वाले दिनों में श्वानों की संख्या तेजी से बढ़ सकती है।
मानकों को पूरा नहीं कर पा रही संस्थाएं
एनीमल वेलफेयर बोर्ड आफ इंडिया द्वारा श्वानों के बधियाकरण के संबंध में 21 मार्च 2023 को परिपत्र जारी किया गया था। इसमें पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 के संबंध में जानकारी देते हुए स्पष्ट किया था कि आवारा श्वानों का बधियाकरण करने वाली संस्था को बोर्ड से पंजीयन कराना अनिवार्य होगा। बधियाकरण करने वाले चिकित्सकों के लिए भी अनुभव के आधार पर गाइडलाइन तय की गई है। सरकार द्वारा जारी मानकों का हवाला देते हुए बोर्ड ने जबलपुर सहित सभी नगरीय निकायों को श्वानों के बधियाकरण संबंधी पुरानी निविदा का निरस्त कर सात दिन के अंदर नए नियमों के अनुसार नई निविदा जारी कर आवारा श्वानों के बधियाकरण की कार्रवाई सुनिश्चित करने कहा था। बोर्ड का परिपत्र मिलने के बाद नगर निगम ने डेढ़ वर्ष से आवारा श्वानों के बधियाकरण पर रही अपंजीकृत संस्था पर रोक लगा दी और नई संस्था नियुक्त करने दो बार निविदा भी जारी की। लेकिन नगर निगम बीते तीन माह से अभी तक ऐसी संस्था ही नहीं मिल पा रही जो बोर्ड के मानकों को पूरा करती हो।
सदन में उठ चुका बधियाकरण में गड़बड़ी का मुद्दा
विदित हो कि शहर में आवारा श्वानों के बधियाकरण केक नाम पर की गई गड़बड़ी का मुद्दा भी नगर निगम की सदन की बैठक में गूंज चुका है। 17 मार्च 2023 को सदन में सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी का हवाला देते नेता प्रतिपक्ष ने बधियाकरण करने वाली संस्था दिन में 40 से 50 नर और मादा कुत्तों का बधियाकरण कर रही है। जबकि वेटरनरी चिकित्सों का कहना है एक मादा श्वान का बधियाकरण करने में करीब डेढ़ घंटे का समय लगता है वहीं नर श्वान के बधियाकरण में तकरीबन एक घंटा। इस तरह एक दिन में बमुश्किल 10 से 12 कुत्तों का ही बधियाकरण किया जा सकता है।
शहर में 2011 से चल रहा बधियाकरण
शहर में श्वानों का बधियाकरण कराने का कार्य पिछले करीब 12 वर्षों से कराया जा रहा है। इन दौरान निगम तीन संस्थाओं से कार्य कराया। निगम का दावा है कि पिछले 12 वर्षो में लगभग 60 हजार से ज्यादा आवारा श्वान जिसमें नर और मादा श्वान शामिल है का बधियाकरण कराया जा चुका है। नगर निगम ने बधियाकरण के नाम पर तीन करोड़ रुपये से ज्यादा राशि खर्च कर चुका है।
तीन करोड़ से ज्यादा राशि बधियाकरण में हो चुकी खर्च
- – 60 हजार श्वानों के बधियाकरण का दावा
- – 705 और मादा और 678 रुपये एक नर श्वान के बधियाकरण में होते हैं खर्च
- – 3 करोड़ से ज्यादा की राशि बधियाकरण पर खर्च की गई
इनका कहना है..
पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 के तहत आवारा श्वानों का बधियाकरण करने वाली संस्था को एनीमल वेलफेयर बोर्ड आफ इंडिया के नए मानकों के तहत बोर्ड से पंजीयन कराना अनिवार्य किया गया है। निगम ने दो बार निविदा निकाली पंजीकृत संस्थाएं नहीं मिल रही है। बधियाकरण कार्य तीन माह से बंद है। जल्द ही संस्था नियुक्त कर बधियाकरण का कार्य कराया जाएगा।-भूपेंद्र सिंह, स्वास्थ्य अधिकारी नगर निगम