असंतुलित आहार के खतरे हो रहे नजरंअंदाज
असंतुलित आहार के खतरे हो रहे नजरंअंदाज
जैसा खाओ अन्न, वैसा होवे मन वाली कहावत तो वैदिक ज्ञान के मूल में ही है। यही आधार विचारों के उत्थान-पतन का कारण है। आज विकास व उपज बढ़ाने के नाम पर पूरे विश्व में विष बांटा जा रहा है। वह इसलिए क्योंकि रासायनिक खाद, कीटनाशक, खाद्य संरक्षक (फूड) प्रिजरवेटर), रंग और बनावटी खाद्यान्न तक हमारे मूल अन्न का अंग बन गए।
सब कुछ कमर्शियल हो गया। व्यापारिक स्वार्थ से जुड़े ये सब स्वास्थ्य के दुश्मन बन गए।
जी 20 में इन पर अंकुश लगाने की चर्चा नहीं हुई !
होती भी क्यों महामारी आक्रामकता के साथ नहीं आएगी तो टीके दवा और डायग्नोसिस का बाजार कैसे गर्म होगा।
सम्मेलन में जो निर्णय हुए वे बीमारी, बचाव एवं स्वास्थ्य रक्षण से जुड़े कतई नहीं हैं। छोटे और मध्यम आयवर्ग के देशों द्वारा कोविड-19 के दौर में कितनी कीमत चुकाई गई।
देखा जाए तो रोगों के प्रसार का दूसरा बड़ा माध्यम है फास्ट और जंक फूड। भोजन भी सब कुछ बासी (फ्रीज का), डिब्बा बन्द और असंतुलित आहार और चटपटा। नई पीढ़ी को फास्ट फूड की चपेट आती जा रही है। यह पीढ़ी बचपन से ही रोगों का शिकार हो रही है जबकि इस उम्र में एक गोली खाने की भी जरूरत नहीं होती। आज तो हर छोटे-बड़े स्कूल की कैटीन और पार्क सिनेमा हॉल , कॉम्प्लेक्स आदि में फास्ट फूड उपलब्ध है। क्या यही विकास का मापदण्ड बन गया। सोचो सरकारें स्वास्थ्य के प्रति चिन्तित कहां दिख रही हैं? रोगों के बचाव पर ध्यान देने के बजाय कुछ वर्ग के लिए स्वार्थ हित में अस्पताल खुले जा रहे है।
सम्मेलन में स्वास्थ्य के बचाव पर नहीं सही अर्थों में सम्मेलन के निर्णयों की दिशा उद्योगों के विकास को ही इंगित करती है। सोचो जिन लोगों का शिक्षण-प्रशिक्षण अंग्रेजी में ही हुआ, जिन्होंने मातृभूमि का स्वाद ही नहीं चखा, जिनके सपने केवल सत्ता से जुड़े हैं, उनको भारत का प्रतिनिधि बनाना देश हित में नहीं होगा। अन्न की सही मायने में भारतीय अवधारणा होती उसकी सम्मेलन में चर्चा होती तो कितना अच्छा होता।