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आदिवासियों के रोम-रोम में बसता है आनंद-उल्लास के साथ संगीत

डही। विश्व संगीत दिवस पर अगर आदिवासी लोक संगीत की चर्चा न हो तो शायद संगीत की चर्चा पूरी भी नहीं होगी। संगीत ने चाहे कितने ही पड़ाव पार कर लिए हों, लेकिन उसका उद्गम वनों और जंगलों में रहता आया आदिवासी समाज ही है। धार जिले के आदिवासी समाज के लोग भी अपनी इस पुरातन धरोहर को संभाले हुए हैं। गीत-संगीत का आदिवासी समाज में प्राचीनकाल से ही महत्व रहा है।

दरअसल, जनजातीय जीवन में आनंद और उल्लास का मुख्य स्थान है। ये प्रायः एक विशेष स्थान में एक ही क्षेत्र में निवास करते हैं। इसलिए इनके बीच विशेष आदत, संस्कृति, रिवाज, गीत-संगीत आदि सदा अक्षुण्ण रहता है। जनजातीय जीवन में विभिन्न त्योहारों, गीत, संगीत, नृत्य का काफी महत्व है।

भगोरिया के ढोल, मांदल बांसुरी की तान

ऐसे वाद्य यंत्र जिनके बिना जनजातीय संगीत की परिकल्पना नहीं की जा सकती। इनमें भगोरिया जैसे सांस्कृतिक लोक पर्व में बजने वाले ढोल, मांदल हो या बांसुरी की तान। जिनके ठाठ आज भी कायम है। वहीं शादी-ब्याह में बजने वाले आदिवासी परंपरागत वाद्य यंत्र दमकड़े, ढोलकिये, फेफरिये, घूंघरू, लोटा,थाली आज भी गीत संगीत की मधुर धुन बिखेरते हुए देखे जा सकते हैं।

आदिवासी युवाओं ने इन्हीं प्राचीन वाद्य यंत्रों के साथ अपने बैंड बना लिए हैं। आकर्षक वेशभूषा में स्वांग रच निकलने वाली जनजातीय रायबुदलियों का दल आज भी प्राचीन संगीत की छटा बिखेरते देखा जा सकता है। प्राचीन दौर से लेकर वर्तमान आधुनिक दौर तक गीत संगीत में कई बदलाव आए हैं, लेकिन आदिवासी जनजातीय वर्ग में पुरातन और प्राचीन वाद्य यंत्रों का आज भी वही मुकाम है।

दृष्टिहीन कलाकार ने पाया मुकाम

ऐसा नहीं है कि क्षेत्रीय आदिवासी गायकों का गीत-संगीत अब किसी विशेष क्षेत्र तक ही सीमित रह गया है, बल्कि वर्तमान दौर में कई आदिवासी गायक कलाकार अपने पुरातन संगीत के साथ जुगलबंदी कर प्रसिद्ध हो रहे हैं। डही क्षेत्र के ग्राम बड़वान्या के रहने वाले 22 वर्षीय दृष्टिहीन युवक अनिल पिपली जो कभी गली-मोहल्लों में पांच रुपये मांग गले से संगीत निकाल गीत गाया करते था, उन्होंने तीन साल में ऐसा मुकाम पा लिया है कि उनके सैकड़ों गाने यूट्यूब पर देखे जा सकते हैं।

उनका गीत ‘आखा इयाव देखी आय, हुई गयली नाराज’ लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। इसी तरह उनके अन्य आदिवासी गाने ‘कवेली-कवेली तुते कमर पातेली.., छाम छिम गुगरिया वाजे, झिनली घुघरी नु गाट, दारु की तुमड़ी छमाछम वाजे जैसे आदिवासी गीत अपने लोक संगीत के साथ शादियों और विभिन्न अवसरों पर धूम मचा रहे हैं। डही के आदिवासी नर्तक दलों ने अपनी पहचान प्रदेश स्तर तक बनाई है। उन्हें विभिन्न शासकीय आयोजनों में सरकार ने शामिल किया है।

नर्तक दल विभिन्न अवसरों पर देते हैं प्रस्तुति

यह आदिवासी नृत्य दल आदिवासी गीत-संगीत पर जब थिरकते हैं तो हर कोई इनमें डूब जाता है। अब तो क्षेत्र में स्कूल जाने वाले युवक-युवतियों के भी नर्तक दल बनने लगे हैं, जो स्कूलों सहित विभिन्न अवसरों पर अपनी प्रस्तुति देते हैं। भगोरिया में तो नर्तक दल अपनी अलग छटा बिखेरते ही है, अब तो शादी ब्याह में अन्य समाज के लोग भी आदिवासी नर्तक दलों को बुलाने लगे हैं।

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