मेरा सौभाग्य कि राम जन्मभूमि आंदोलन के समय मैं अयोध्या में थी हम पूरी तैयारी से गए थे: सांसद प्रज्ञा ठाकुर
भोपाल। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के पहले दिन “लोक परंपराओं में श्रीराम” विषय पर मुख्य अतिथि सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कहा कि मैं भगवान राम के ऊपर क्या बोलूं, मेरा जीवन ही उनसे शुरू हुआ। उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन के बारे में कहा कि छह दिसंबर को श्रीराम के लिए कितनी बड़ी संख्या में जनता अयोध्या गई थी। मैं एक दिसंबर को कर्म करने अयोध्या पहुंच गई थी। लोगों ने कहा-नारे मत लगाना, पुलिस पकड़ लेगी। हमने वहीं जोर-जोर से नारे लगाने शुरू कर दिए। हम पूरी तैयारी कर अयोध्या गए थे। उन्होंने कहा कि विवादित ढांचा के जगह पर टेंट लगा दिया। इन सब में मेरी भूमिका थी। यह मेरा सौभाग्य है। मेरे पिताजी ने कहा था कि लौटने का लोभ मन में नहीं रखना। समर्पित होकर जाओ, तुम रामजी की हो। हम भी सोच-विचार कर गए हैं जो कर्म करेंगे, वह रामजी का और अगर चले गए तो उनके लिए ही।उस आंदोलन के समय अयोध्या में मौजूद थी, मैं राममय हूं। राम के लिए जीती हूं। राम मेरी भक्ति और शक्ति हैं।
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय एवं अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग(उप्र) के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित संगोष्ठी का समापन सोमवार को हुआ। कार्यक्रम के दूसरे दिन भारतीय लोकपरंपराओं में भगवान श्रीराम विषय को विभिन्न भाषाओं बुन्देली, मैथिली, मालवी, मराठी, अवधि, भोजपुरी, ब्रजभाषा आदि भाषाओं में कथाओं जिनका लोक में महत्व व उनके संबंध को स्पष्ट किया गया। इस सत्र में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली के पूर्व कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने अपने उद्बोधन में भगवान श्रीराम व संस्कृत साहित्य के परस्पर संबंधों पर प्रकाश डाला। रामायण कथा के मर्मज्ञ महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन के पूर्व कुनपति प्रो. मिथिला प्रसाद त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में भगवान श्रीराम के आदर्शों को ग्रहण करने व उनसे प्रेरणा प्राप्त कर समाज व राष्ट्र कल्याण की भावना को प्रसारित करने का आग्रह किया।इस संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी, प्रो. मिथिलाप्रसाद, डा. लीना रस्तोगी, प्रो. सरोज कौशल, प्रो. शैलेंद्र शर्मा, प्रो. सुबोध शर्मा, डा. मंजुलता शर्मा सहित अन्य विशिष्ट वक्ताओं ने महत्त्वपूर्ण व्याख्यान प्रस्तुत किए। संगोष्ठी में करीब 70 शोधपत्र वाचन किए गए।