आध्यात्म और संस्कारो का करना होगा पालन
हमारे भारत में भी 1 जनवरी को जोर शोर से नववर्ष मनाया जाने लगा है। पश्चिमी सभ्यता अंग्रेजी कैलेंडर पर नव वर्ष सेलिब्रेट होने लगा है।
इस बारे में नारायण मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुमित गक्खड़ का कहना है कि
लेकिन यह क्या संस्कृति सामने आ रही है कि नव वर्ष की पूर्व संध्या पर नशे में चूर हो जाए रातें काली करें और सुबह अपना दिन खराब करें।
आजकल की युवा पीढ़ी में नववर्ष की पूर्व संध्या हो या कोई भी त्यौहार हो उनके लिए खुशी का मतलब नशा हैं। वह सोचते हैं नशा नहीं किया तो खुशी नहीं मिली। युवाओं में यह सोच पनप रही है कि पार्टी का मतलब अल्कोहल।
आजकल युवा पीढ़ी गांजे का सेवन भी बहुत करने लगी है स्कूल कॉलेज के लड़कों को गांजा का सेवन करते हुए देखा जा सकता है।
आज बिगड़ी जीवन शैली में युवाओं में तीन बुरी आदतें सामने देखने को मिल रही है पहला नशा दूसरा रिलेशनशिप तीसरा क्रोध उत्तेजना।
अभी हाल ही हमारे सामने इन तीनों बुरी आदतों के क्लासिकल उदाहरण सामने आया है जिस कारण हुए मर्डर बलात्कार के केसेज को मीडिया ने बहुत उछाला है। इन सब का जिम्मेदार काफी हद तक सिनेमा का बिगड़ता स्वरूप है।
आजकल की सिनेमा में स्टंट और हिंसा भरपूर दिखाई देती है। इन पर अंकुश लगाना चाहिए।
सिनेमा में आज भी 1984 के शराबी मूवी के गाने
लोग कहते हैं मैं शराबी हूं और नशा शराब में होता तो नाचती बोतल
चार बोतल वोतका काम मेरा रोज का।
जैसे गानों का प्रचलन रुका नही है। इन गानों से युवा पीढ़ी भ्रमित होती है। उनके लिए आनंद का दूसरा पर्याय नशा बन रहा है। इसके अलावा उन्होंने बेहद चिंताजनक स्थिति पर गौर करते हुए बताया कि आजकल लिविंग रिलेशनशिप भी काफी देखने को मिल रही है जो एक धीमा जहर है यह प्री मैरिज रिलेशनशिप शादी के बाद भी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स को बढ़ावा दे रहा है जो अत्यंत घातक तस्वीर पेश करेगी।
युवा पीढ़ी में दिन प्रतिदिन संस्कारों में गिरावट देखने को मिल रही है इसका समाधान के बारे में डॉक्टर गक्खड़ कहते हैं कि हमें जीवन में अध्यात्म को शामिल करना चाहिए आध्यात्मिक ही हमें जीवन जीने का तरीका सिखाएगा। अध्यात्म में अनुशासन और मर्यादा है जिससे जीवन सफल होता है।
आज की जरूरत है को हमें शिक्षा में आध्यात्मिक को शामिल किया जाना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी में आध्यात्म के महत्व के बारे में अच्छी तरह पता चल जाए।
संस्कारों की ही होती है विजय
डॉक्टर सुमित गक्खड़ से उनके डॉक्टर बनने की प्रेरणा के स्रोत के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मेरे पिता श्री अशोक गक्खड़ मेडिकल शॉप के व्यवसाय में थे वे जानते थे कि डॉक्टर की क्या अहमियत है इसलिए वे मुझे प्रेरित करते थे कि तुझे डॉक्टर ही बनना है तो मैंने ठान लिया कि मैं डॉक्टर बन के दिखाऊंगा और इलेवंथ क्लास में ही कोटा जाकर कोचिंग की और डॉक्टर बना।
मेरा छोटा भाई मोहित गक्खड़ दिल्ली से मेडिसिन में डीएनबी कर रहा है और हमारे दोनों के बीच का भाई रोहित पापा के साथ व्यवसाय में हाथ बंटाता है मैं अंत में यही कहना चाहूंगा कि युवा पीढ़ी में संस्कार केवल अध्यात्म से ही आ सकते हैं आध्यात्मिक के महत्व को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।
संपर्क सूत्र : डॉ सुमित गक्खड़ मो +91 74129 66986