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dermatology / चर्मरोगहैल्थ

अटोपिक एक्जिमा पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित

दुनिया में लगभग 22 करोड लोग एटोपिक एक्जिमा के साथ जी रहे हैं : डॉक्टर दिनेश माथुर

हर वर्ष 14 सितम्बर को त्वचाविज्ञान रोगी संगठनों और यूरोपीय फेडरेशन ऑफ एलर्जी रोग रोगी संघों के अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन द्वारा अटोपिक एक्जिमा पर विश्व में जानकारी फैलाने हेतु कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। जिस कड़ी में जयपुर के राजस्थान अस्पताल में एक कार्यक्रम में इस रोग की जानकारी हेतु पोस्टर विमोचन किया गया।
इस अवसर पर राजस्थान अस्पताल के चेयरमैन आईएमए के पूर्व अध्यक्ष तथा जोधपुर ऐम्स के वर्तमान अध्यक्ष डॉ एस.एस. अग्रवाल, अस्पताल के प्रेसिडेन्ट एवं अस्थमा रोग विशेषज्ञ डॉ विरेन्द्र सिंह, मेजर जनरल डॉ विजय सारास्वत के साथ वरिष्ठ त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ दिनेश माथुर एवं सुविख्यात श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ शीतू सिंह समेत बहुत से विख्यात चिकित्सक मौजूद थे।
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए डॉ एस.एस अग्रवाल ने कहा कि एटोपिक डर्मेटाइटिस या एटोपिक एक्जिमा विश्व स्तर पर एक बड़ी समस्या है, जो लगभग पांच बच्चों में से एक और दस वयस्कों में से एक को प्रभावित करती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ विरेन्द्र सिह ने बताया कि एटोपिक एक्जिमा शुष्क, खुजलीदार और सूजन वाली त्वचा के कारण होता है। यह छोटे बच्चों में काफी होता है, लेकिन किसी भी उम्र में हो सकता है। एटोपिक एक्जिमा लंबे समय तक चलने वाली बीमारी हैै लेकिन यह संक्रामक नहीं है।
वरिष्ठ त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ दिनेश माथुर ने बताया कि दुनिया में लगभग 22 करोड लोग एटोपिक एक्जिमा के साथ जी रहे हैं, जिनमें से लगभग 4 करोड 1-4 वर्ष की आयु के हैं।

समय पर इलाज और परहेज जरूरी

एटोपिक एक्जिमा वाले लोगों में खाद्य एलर्जी होती है। उनमें फीवर और अस्थमा विकसित होने का खतरा होता है। नियमित रूप से मॉइस्चराइजिंग और अन्य त्वचा की देखभाल का पालन करने से खुजली से राहत मिल सकती है और रोग गंभीर होने से रोका जा सकता है। एटोपिक एक्जिमा के लक्षण शरीर पर कहीं भी प्रकट हो सकते हैं और प्रत्येक व्यक्ति में व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं। जैसे सूखी, फटी हुई त्वचा, सूजी हुई त्वचा पर दाने, जिसका रंग त्वचा के रंग के आधार पर अलग-अलग हो सकता है, भूरी या काली त्वचा पर छोटे, उभरे हुए उभार, रिसना और पपड़ीदार त्वचा, आंखों के आसपास की त्वचा का काला पड़ना,एटोपिक एक्जिमा अक्सर 5 साल की उम्र से पहले शुरू होती है और किशोर और वयस्क वर्षों तक जारी रह सकती है।
कारण अनेक :
प्रतिरक्षा प्रणाली ख़राब होना या अत्यधिक प्रतिक्रिया होना त्वचा की सूजन विकसित होने की आनुवंशिक प्रवृत्ति पर्यावरणीय परिवर्तन या साबुन, इत्र और डिटर्जेंट जो प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया को बदलते हैं
त्वचा में जलन उत्पन्न करने वाले पदार्थ का सीधा संपर्क या पूर्व में अस्थमा रहा हो आदि।

डॉक्टर माथुर ने कहा कि 15,000 से अधिक विभिन्न पदार्थ एलर्जी त्वचा प्रतिक्रिया का कारण बन सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप डर्मेटाइटिस या एक्जिमा हो सकता है। कुछ लोगों में, एटोपिक एक्जिमा का कारण एक भिन्न तरह के जीन से होती है जो त्वचा की सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता को प्रभावित करती है। कमजोर अवरोधक कार्य के साथ, त्वचा की नमी बनाए रखने और बैक्टीरिया, जलन, एलर्जी और पर्यावरणीय कारकों – जैसे तंबाकू के धुएं से रक्षा करने में कम सक्षम होती है। अन्य लोगों में, एटोपिक एक्जिमा त्वचा पर स्टैफिलोकोकस ऑरियस बैक्टीरिया की बहुत अधिक मात्रा के कारण होता है। यह सहायक बैक्टीरिया को विस्थापित कर देता है और त्वचा के अवरोधक कार्य को बाधित कर देता है। एक कमजोर त्वचा अवरोधक कार्य प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिक्रिया को भी शुरू कर सकता है जो सूजन वाली त्वचा और अन्य लक्षणों का कारण बनता है।

व्यक्तियों को अन्य प्रकार के संपर्क एक्जिमा एवं भिन्न भिन्न प्रकार के व्यवसायो में काम करने वाले लोगो में व्यवसायिक एक्जिमा के रूप में उभर सकते है।

सुविख्यात श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ शीतू सिंह ने बताया कि एटोपिक एक्जिमा की जटिलताओं में अस्थमा और फीवर हो सकता है। यह एटोपिक एक्जिमा की विकसित होने से पहले या बाद में भी हो सकता है।
एटोपिक एक्जिमा वाले लोगों में अक्सर खाद्य एलर्जी विकसित हो जाती है। इस स्थिति का एक मुख्य लक्षण पित्ती (पित्ती) है।
डॉ माथुर ने बताया कि पुरानी खुजलीदार, पपड़ीदार त्वचा। न्यूरोडर्मोटाइटिस (लाइकेन सिम्प्लेक्स क्रॉनिकस) नामक त्वचा रोग खुजली से शुरू होती है। खुजलाने से वास्तव में त्वचा में खुजली हो जाती है क्योंकि यह त्वचा में तंत्रिका तंतुओं को सक्रिय कर देती है। इस स्थिति के कारण प्रभावित त्वचा बदरंग, मोटी और चमड़े जैसी हो सकती है। त्वचा के धब्बे जो आसपास के क्षेत्र की तुलना में गहरे या हल्के होते हैं। दाने ठीक हो जाने के बाद होने वाली इस जटिलता को पोस्ट-इंफ्लेमेटरी हाइपरपिग्मेंटेशन या हाइपोपिग्मेंटेशन कहा जाता है। यह भूरी या काली त्वचा वाले लोगों में अधिक आम है। त्वचा संक्रमण. बार-बार खुजलाने से त्वचा फट जाती है जिससे खुले घाव और दरारें हो सकती हैं। इनसे बैक्टीरिया और वायरस से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ये त्वचा संक्रमण फैल सकते हैं और जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं। हाथ में जलन उत्पन्न करने वाला एक्जिमा यह विशेष रूप से उन लोगों को प्रभावित करता है जिनके हाथ अक्सर गीले होते हैं और जैसे घर में काम करने वाली गृहणिया जो साबुन कें डिटर्जेंट और कीटाणुनाशक के संपर्क में आती हैं। एलर्जिक कोन्टेक्ट डरमटाईटिस में खुजलीदार दाने जो जाते है जो उन पदार्थों को छूने से होता है जिनसे एलर्जी है। दाने का रंग त्वचा के रंग के आधार पर भिन्न होता है। एटोपिक एक्जिमा की खुजली नींद में बाधा डाल सकती है।
अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मेजर जनरल डॉ विजय सारास्वत ने भी इस अवसर पर सम्बोधन दिया एवं आगुन्तको को धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया।
संपर्क सूत्र : डॉ दिनेश माथुर
9829061176

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