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डिग्गी कल्याण जी 58वीं लक्खी पदयात्रा आज 22 अगस्त 2023 से

diggi kalyan ji

राजस्थान के टोंक जिले मालपुरा तहसील में डिग्गी नामक ग्राम है। डिग्गी कल्याण जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता हैं. डिग्गी कल्याण जी के मन्दिर का निर्माण आज से लगभग 5600 साल पहले वहां के राजा डिगवा ने करवाया था। डिग्गी कल्याण जी का इतिहास और कथा बहुत प्राचीन और पौराणिक हैं।

श्री कल्याण जी का मंदिर है जो राजस्थान के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक हैं। श्री डिग्गी कल्याणजी मंदिर का निर्माण तो हजारों वर्ष पूर्व हो गया था लेकिन इस मंदिर का पुनर्निर्माण मेवाड़ के राजा महाराणा संग्राम सिंह अर्थात महाराणा सांगा द्वारा सन 1527 ईस्वी की जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन तिवारी ब्राह्मणों द्वारा हुआ था। डिग्गी कल्याण जी का इतिहास प्राचीन होने के साथ-साथ गौरवमयी भी है।

देवराज इंद्र के दरबार में एक उर्वशी नामक अप्सरा थी एक दिन नृत्य के दौरान उर्वशी को बेवजह हंसी आ गई, तो इस पर देवराज इंद्र को गुस्सा आ गया और उसने उर्वशी को 12 साल का मृत्यु लोक पर रहने का कठोर दंड सुनाया इसे स्वीकार कर उर्वशी मृत्यु लोक में आ गई शुरू में वह सप्तर्षियों के आश्रम में रहने लगी उसके बाद चंद्र गिरी नामक पर्वत पर रहने लगी।

वहां डिगवा नामक राजा का शासन था उनकी नजर में उर्वशी आ गई और उनके मन को भा गई उन्होंने उर्वशी को अपने साथ विवाह का प्रस्ताव दिया जिसे उर्वशी ने ठुकरा दिया राजा के बार-बार जिद्द करने पर उर्वशी ने एक शर्त रखी कि वह 12 वर्ष की दंड अवधि पूरा करने मृत्यु लोक में आई है। यह पूर्ण होते ही देवराज इंद्र मुझे वापस लेने आएंगे तुम्हारे को मुझे रोकने के लिए उनके साथ युद्ध करना पड़ेगा। यदि तुम हार गए तो मैं तुम्हें श्राप दूंगी।

देवराज इंद्र और राजा डिगवा के बीच भयंकर युद्ध हुआ राजा डिगवा को हारते न देख देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु की सहायता मांगी भगवान विष्णु की मदद से देवराज इंद्र ने राजा डिगवा को हरा दिया।

जब अप्सरा उर्वशी स्वर्ग लोक जाने लगी तो उसने राजा डिगवा को श्राप दे दिया कि वह आजीवन कुष्ठ रोग से ग्रसित रहेगा।

अनेक इलाज के बाद भी राजा डिगवा का कुष्ठ रोग ठीक नहीं हुआ तत्पश्चात उसने भगवान विष्णु की तपस्या की भगवान विष्णु ने उसे कहा कि समुद्र में बह कर मेरी प्रतिमा आएगी उसके दर्शन मात्र से तुम्हारा रोग ठीक हो जाएगा।

एक व्यापारी को यह प्रतिमा नजर आई उस ने प्रतिमा को बाहर निकाला प्रतिमा के दर्शन से उसका कल्याण हो गया यह बात राजा को पता चली। राजा ने भी प्रतिमा के दर्शन किए तो उसका कुष्ठ रोग ठीक हो गया। अब राजा व्यापारी के बीच में यह युद्ध हो गया कि इसका उत्तराधिकारी कौन।

युद्ध के दौरान आकाशवाणी हुई की तुम में से जो भी इस प्रतिमा को घोड़े के स्थान पर लेकर जाएगा यह प्रतिमा उसकी होगी। शुरू में व्यापारी ने उस प्रतिमा को ले जाने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रहा फिर राजा ने उस प्रतिमा को ले जाने का प्रयास किया वह कुछ दूर तक तो सफल रहा बाद में जहां देवराज इंद्र और राजा डिगवा का युद्ध हुआ था उस स्थान पर जाकर रथ रुक गया।

राजा डिगवा ने पुरजोर प्रयास किए किंतु वह रथ आगे नहीं बढ़ा सके अंततः थककर राजा ने इसी स्थान पर कल्याण जी के मंदिर की स्थापना की, तब से लेकर आज तक यह स्थान डिग्गी धाम के नाम से विश्व विख्यात है।

तब से यह जानना है कि इस प्रतिमा के दर्शन मात्र से लोगों का कल्याण होता है। इसलिए लोग दूर-दूर से चलकर पदयात्रा व विभिन्न साधनों से इस प्रतिमा के दर्शन करने आते हैं।

डिग्गी कल्याण जी वैसे तो भगवान विष्णु का रूप हैं, लेकिन भक्त लोग इस प्रतिमा में भगवान राम और श्री कृष्ण का रूप भी देखते हैं।

यह डिग्गी कल्याण जी के इतिहास का कुछ ही अंश है।

 

 

 

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