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भगवान शिव ने क्यों किया था चंद्रमा को अपने शीश पर धारण जानिए इसकी रोचक कथा

सावन के महीना करीब आ रहा है और इस दौरान भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। भोलेनाथ को देवों के देव महादेव कहा जाता है। इनकी कृपा से व्यक्ति को जीवन में कोई कष्ट नहीं होता है। पूजा के वक्त भगवान शिव के रूप के वर्णन में चंद्रमा का जिक्र जरूर आता है। महादेव के शीश पर गंगा और मस्तक पर अर्ध चंद्र हमेशा विराजमान रहते हैं। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा क्यों विराजमान है, इसे लेकर पुराणों में रोचक कथाएं मिलती हैं।

शीतलता के लिए चंद्र

शिवपुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया था। इस विष को अपने कंठ में धारण करने के कारण भगवान शिव नीलकंठ कहलाए थे। पुराण में लिखित कथा के मुताबिक, विष पान के बाद महादेव का शरीर तपने लगा था और उनका मस्तिष्क जरूरत से ज्यादा गर्म हो गया था। महादेव का ये दृश्य देख सभी देवी देवता घोर चिंतित होने लगे। तब सभी देवताओं ने उनसे प्रार्थना की कि वह अपने शीश पर चंद्र को धारण करें, ताकि उनके शरीर में शीतलता बनी रहे। श्वेत चंद्रमा को बहुत शीतल माना जाता है जो पूरी सृष्टि को शीतलता प्रदान करते हैं. देवताओं के आग्रह पर शिवजी ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया।

चंद्रमा को किया श्रापमुक्त

एक अन्‍य कथा के अनुसार, चंद्रमा की पत्‍नी 27 नक्षत्र कन्याएं हैं। इनमें रोहिणी उनके सबसे समीप थीं। इससे दुखी चंद्रमा की बाकी पत्नियों ने अपने पिता प्रजापति दक्ष से इसकी शिकायत कर दी। तब दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रस्त होने का श्राप दिया। इसकी वजह से चंद्रमा की कलाएं क्षीण होती गईं। चंद्रमा की परेशानी देखकर नारदजी ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहा। चंद्रमा ने अपनी भक्ति और घोर तपस्या से शिवजी को जल्द प्रसन्न कर लिया. शिव की कृपा से चंद्रमा पूर्णमासी पर अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुए और उन्हें अपने सभी कष्टों से मुक्ति मिली। तब चंद्रमा के अनुरोध करने पर शिवजी ने उन्‍हें अपने शीश पर धारण किया।

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