धुएं का कोई भी रूप फेफड़ों के लिए हानिकारक — डॉ. मनोज कुमार
dr manoj kumar @sms hodpital # chest/ pulmonologist

धुएं का कोई भी रूप फेफड़ों के लिए हानिकारक — डॉ. मनोज कुमार
जयपुर। एसएमएस मेडिकल कॉलेज के श्वसन रोग संस्थान में प्रोफेसर डॉ. मनोज कुमार ने चेतावनी दी है कि धुएं का कोई भी स्रोत—चाहे वह सिगरेट, हुक्का, चूल्हा, फैक्ट्री, प्रदूषण या धार्मिक गतिविधियों जैसे हवन से निकला हो—फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।
उन्होंने बताया कि आजकल लोग स्मोकिंग या हुक्के का सेवन आनंद या लत के रूप में करते हैं, लेकिन वे यह नहीं समझते कि इस प्रक्रिया में धुएं को जब गहराई से फेफड़ों तक ले जाया जाता है, तो ट्रेकिया (सांस की मुख्य नली) में सूजन (inflammation) और संकुचन (narrowing) जैसी स्थितियाँ पैदा हो जाती हैं, जिससे आगे चलकर सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) जैसी गंभीर बीमारी विकसित हो सकती है।
*पैसिव स्मोकिंग भी उतनी ही खतरनाक*
डॉ. मनोज ने बताया कि हलवाई, पुजारी, फैक्ट्री वर्कर, या ऐसे व्यक्ति जो लगातार किसी न किसी धुएं के संपर्क में रहते हैं, वे भले स्वयं धूम्रपान न करते हों, लेकिन पैसिव स्मोकिंग (दूसरों के धुएं को सांस के जरिए लेना) से भी फेफड़ों की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
> “यहां तक कि धार्मिक आयोजनों में हवन के समय निकलने वाला धुआं भी लंबे समय तक संपर्क में आने पर नुकसान पहुंचा सकता है। कुल मिलाकर बात यह है कि धुआं किसी भी रूप में उपयोगी नहीं है।”
सीओपीडी से कैंसर तक का सफर
डॉ. मनोज कुमार ने गंभीर चेतावनी देते हुए बताया कि एक बार जब व्यक्ति को सीओपीडी हो जाता है, तो फेफड़ों के कैंसर की संभावना 10–15% तक बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि फेफड़ों की बीमारियों का इलाज जटिल और दीर्घकालिक होता है, और अधिकतर मरीज अंतिम चरण (late stage) में ही डॉक्टर के पास पहुंचते हैं, जब इलाज कठिन और सीमित हो जाता है।
स्क्रीनिंग है सबसे बेहतर बचाव
उन्होंने विशेष रूप से 50 वर्ष से अधिक आयु के उन लोगों को सलाह दी, जो या तो धूम्रपान करते हैं, या किसी तरह के धुएं के लगातार संपर्क में रहते हैं, या जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में फेफड़ों की बीमारियाँ रही हैं। ऐसे लोगों को सावधानी के तौर पर सीटी स्कैन (CT Scan) अवश्य करवाना चाहिए।
> “एसएमएस मेडिकल कॉलेज में यह जांच सुविधा पूरी तरह निशुल्क उपलब्ध है।
संपर्क : +919462299518 प्रोफेसर , डॉ. मनोज कुमार, श्वसन रोग संस्थान, एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर