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चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे है न्यू एडवांसमेंट्स। जयपुर में होता है असाध्य और कठिन रोगों का आधुनिकतम और नव सृजित तकनीकों से इलाज ।
cancer / कैंसर

*कैंसर को “मौत का वॉरंट” समझने के बजाय उसे एक चुनौती के रूप में लें।* भ्रांतियों को तोड़ने के लिए जागरूकता बढ़ाएँ

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गांठ को छेड़ने से फैलने, स्टेज IV कैंसर का अभिशाप मानना एकदम गलत

एक संक्षिप्त अवलोकन में, समाज में कैंसर को लेकर फैली मिथकों ने न केवल रोगी और परिवार में भय और लज्जा जन्म दी है, बल्कि उपचार में देरी और गलत विकल्पों की ओर धकेला है।

इलाज के प्रति लोगों की मानसिकता

बहुत से लोग इलाज शुरू करने से पहले ही असहाय हो जाते हैं, कहते हैं—“अब क्या फायदा?” इससे रोगी अनौपचारिक या अंध-चिकित्सा (जड़ी-बूटी, तावीज़) की ओर भागता है। इन गलत तरीकों से न केवल समय बर्बाद होता है, बल्कि वास्तविक इलाज में देरी भी हो जाती है।

‘दवा से ज़्यादा दुआ’ की भी धारणा है—कैंसर की कीमोथेरेपी को ‘जहर’ मानकर इसकी दुष्प्रभावों से भयभीत हो जाते हैं, जबकि आधुनिक चिकित्सा में एडजस्टमेंट व सहायक देखभाल से इन दुष्प्रभावों को काफी कम किया जा सकता है।

गांठ को छेड़ने से फैलने, स्टेज IV कैंसर का अभिशाप समझे जाने, तंबाकू, शराब और अस्वस्थ जीवनशैली जैसी कारकों ने जोखिम को और बढ़ाया है।

फिर भी बता दें कि

आधुनिक चिकित्सा में हेड एंड नेक कैंसर में स्टेज IV A व B तक उपचार योग्य हैं।

डॉ. जितेंद्र कुमार शर्मा की हेड एंड नेक कैंसर में एमसीएच योग्यता है जो राजस्थान में किसी डॉक्टर को प्रथम बार हासिल है।उनका कहना है कि रोगी के आत्मसम्मान व विश्वास को बनाए रखकर रोग की सफलता की कुंजी बनती है।

ICMR के नवीन आंकड़े बताते हैं कि 2022 में 14.6 लाख नए केस दर्ज हुए, और जीवनकाल में 1 में से 9 व्यक्तियों को कैंसर का सामना करना पड़ सकता है। आगे बढ़कर, जागरूकता, विशेषज्ञ चिकित्सा तथा सहकामी समर्थन से इस “मौत का वॉरंट” को “जीत का बीज” बनाया जा सकता है।

1. कैंसर के प्रति भ्रांतियां और सामाजिक दृष्टिकोण

गांठ फैलने की मिथक

“गांठ को छेड़ने या काटने से कैंसर शरीर में फैल जाता है” की धारणा व्यापक है, हालांकि यह वैज्ञानिक रूप से असत्य है ।

एक अध्ययन में पाया गया कि अधिकांश रोगियों एवं उनके परिवारों ने यह विश्वास साझा किया कि सर्जरी (“कटना”) और हवा में एक्सपोज़ होने से कैंसर गति पकड़ लेता है ।

अंतिम अवस्था को लाइलाज समझना

कई लोग मानते हैं कि जब कैंसर “लास्ट स्टेज” में पहुँच गया तो वह लाइलाज हो जाता है, फिर भी स्टेज IV की भी तीन उप-श्रेणियाँ हैं—IV A, IV B और IV C—जिनमें से IV A व IV B में दूरस्थ मेटास्टेसिस नहीं होती और आधुनिक उपचार की पहुँच में हैं ।

2. स्टेज IV—उप-श्रेणियाँ और उपचार की संभावनाएँ

Stage IVA : ट्यूमर किसी भी आकार का हो सकता है, मगर दूरस्थ अंगों में नहीं फैला होता ।

Stage IVB : पास के ऊतकों या लिम्फ नोड्स तक फैल चुका, पर दूरी तक नहीं पहुँचा; कीमोरेडिएशन या विकिरण से भी संभाला जा सकता है ।

Stage IVC : दूरस्थ मेटास्टेसिस के कारण चुनौतीपूर्ण, पर कुछ मामलों में लक्षित चिकित्सा या क्लिनिकल ट्रायल विकल्प हो सकते हैं।

विशेषज्ञता की अहमियत—डॉ. जितेंद्र कुमार शर्मा की भूमिका

परिचय: डॉ. जितेंद्र कुमार शर्मा, एमबीबीएस, एमएस एवं MCh (हेड एंड नेक) प्राप्त शल्य (सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट हेड एंड नेक) ऑन्कोलॉजिस्ट, शैल बी हॉस्पिटल में सेवाएँ दे रहे हैं।

उनका मानना है कि विषय विशेषज्ञता सटीक जानकारी एवं व्यक्तिगत उपचार योजनाएँ सुनिश्चित करती है, जिससे मरीजों को बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं।

डेटा और चेतावनी—डॉ. अजय सिंह चौधरी के अनुसार

ICMR-NCRP के अनुसार भारत में 2022 में 14,61,427 नए कैंसर केस दर्ज हुए, और जीवनकाल में 9 में से 1 व्यक्ति को कैंसर होने की संभावना है ।

वर्तमान रुझान जारी रहने पर 2025 तक नए केस 15.7 लाख तक पहुँच सकते हैं ।

*कैंसर को “मौत का वॉरंट” समझने के बजाय उसे एक चुनौती के रूप में लें।* भ्रांतियों को तोड़ने के लिए जागरूकता बढ़ाएँ, विशेषज्ञों की आस्था व समझदारी पर भरोसा करें, और परिवार-समुदाय का समन्वित समर्थन लें—तभी रोगी का आत्मसम्मान बना रहेगा और हम सब मिलकर कैंसर से “जीत” हासिल कर सकेंगे।

प्रमुख जोखिम कारक : तंबाकू, शराब, आहार व जीवनशैली

तंबाकू एवं श्लेष्माहीन तंबाकू

स्मोकेलेस (च्यूइंग) तंबाकू व सुपारी सेवन से विश्व में तीन में से एक ओरल कैंसर केस जुड़ा पाया गया है ।

शराब का सह-प्रभाव

तंबाकू व शराब का संयोजन गहन रूप से खतरनाक है—ये दोनों मिलकर गले और मुँह के कैंसर का जोखिम 12 गुना तक बढ़ा देते हैं ।

प्रसंस्कृत मांस व लाल मांस

हर 50 ग्राम प्रसंस्कृत मांस दैनिक सेवन से बृहदान्त्र कैंसर का जोखिम लगभग 18% बढ़ता है, और 100 ग्राम लाल मांस से 17% तक बढ़ने का अनुमान है ।

अस्वस्थ आहार

एक उच्च प्रसंस्कृत खाद्य (UPFs) आहार पाचन तंत्र संबंधी और कुछ हार्मोन-संबंधी कैंसर जोखिम को भी बढ़ाता है ।

बैठे रहने का प्रभाव

स्वयं की शोध बताती है कि लंबे समय तक बैठने से कॉलन, एंडोमेट्रियल और फेफड़ों के कैंसर का जोखिम 8–10% तक बढ़ जाता है, भले ही रोज़ाना व्यायाम कर लिया जाए ।

संपर्क सूत्र

डॉ. अजय सिंह चौधरी, मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, शैल बी हॉस्पिटल | 75974 43838

डॉ. जितेंद्र कुमार शर्मा, सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट स्पेशलिस्ट, शैल बी हॉस्पिटल | 78779 38660

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