डॉ. दयाराम स्वामी: संघर्ष से सफलता तक की प्रेरणादायक यात्रा
dr dayaram swami। psychetrist। jaipur
डॉ. दयाराम स्वामी: संघर्ष से सफलता तक की प्रेरणादायक यात्रा
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
1. प्रश्न: डॉ. स्वामी, आपका शुरुआती जीवन कैसा था और किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर: मेरा जन्म नागौर जिले के एक छोटे से गांव खुड़ी में 19 दिसंबर 1957 में हुआ, जहां शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित थीं। मेरे माता-पिता ने मुझे गुरु महंत रामप्रसाद जी को गोद दे दिया था। मेरी प्रारंभिक शिक्षा उनके आश्रम में हुई।
बचपन से ही धार्मिक माहौल में रहकर मैंने अनुशासन, कड़ी मेहनत और आत्मसमर्पण का महत्व सीखा। प्रातः जल्दी उठकर भजन-पूजन, स्कूल जाना, और शाम को गुरु की सेवा करना मेरी दिनचर्या का हिस्सा था।
गुरु महंत रामप्रसाद जी की प्रेरणा और मेरे दृढ़ निश्चय ने मुझे हर बाधा को पार करने का साहस दिया।
2. प्रश्न: चिकित्सा क्षेत्र में जाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
उत्तर: मेरे गांव में स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी थी। बचपन में, मैंने देखा कि छोटी बीमारियां भी जीवन के लिए घातक बन जाती थीं। मेरे चाचा, वैद्य दयालदास जी, ने बीमारों की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया। उनके सेवाभाव और समर्पण ने मुझे प्रेरित किया। तभी मैंने तय किया कि मैं डॉक्टर बनकर समाज की सेवा करूंगा, खासकर मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में।
सफलता और उपलब्धियां
3. प्रश्न: सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज में आपकी यात्रा कैसी रही?
उत्तर: यह मेरे जीवन का एक निर्णायक मोड़ था। यहां मुझे प्रोफेसर डॉ. ओंकार सक्सेना जैसे महान शिक्षकों का मार्गदर्शन मिला। उनका समाजसेवी दृष्टिकोण और सरल जीवनशैली ने मुझे सिखाया कि चिकित्सा केवल एक पेशा नहीं, बल्कि मानवता की सेवा का एक जरिया है।
डॉ सक्सेना अपनी पूरी फीस रामकृष्ण परमहंस मिशन को दिया करते थे। वहीं से मैंने इंसानी मानवीय मूल्य को समझा।
जब मैं कांवटिया अस्पताल में पोस्टेड था तो वहां पर गरीब गंभीर मरीज आया करते थे उनको कई बार हायर सेंटर एसएमएस में रेफर करना पड़ता था उनके पास में वहां जाने के पैसे नहीं हुआ करते थे तो मैं ऑटो टैक्सी कर अपनी जेब से पैसे देकर उन्हें वहां भेजा करता था।
4. प्रश्न: आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है?
उत्तर: मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि मुझे ईश्वर ने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने का अवसर दिया।
मुझे याद है, एक बार जब मैं खाचरियावास अस्पताल में पोस्टेड था, तब एक बीमार वृद्ध महिला को लेकर उसके परिवार वाले मेरे पास आए, जिसके जीवन की सभी ने आशा छोड़ दी थी, मेरे इलाज और काउंसलिंग के बाद 100 वर्ष तक जीवित रहीं।
मुझे याद है एक परिवार का मैं पारिवारिक चिकित्सक था एक दिन मैं बीमार पड़ा,उनके परिवार का एक आदमी आंखों में आंसू भरे मेरे पास में आया और उसने अपनी भावनाएं प्रकट करते हुए कहा यदि डॉक्टर साहब आपको कुछ हो गया तो हमारे परिवार का क्या होगा उसके ऐसे विचार देखकर मैं भाव विभोर हो गया था।
उनके परिवार का यह सम्मान और आभार मेरे लिए किसी भी पुरस्कार से बढ़कर था।
दुख होता है कि आज चिकित्सक और मरीज का रिश्ता व्यवसायीकरण की ओर बढ़ गया है। मानवीय संवेदनाएं और चिकित्सीय आत्मीयता लगभग खत्म हो रही हैं। मेरा मानना है कि हमें इस पवित्र रिश्ते को पुनर्जीवित करना चाहिए।
सफलता के मूल मंत्र
5. प्रश्न: सफलता के लिए आप किसे सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं?
उत्तर: मेहनत, अनुशासन और निरंतर सीखने की इच्छा ही सफलता की कुंजी है। जीवन में कभी हार न मानें और अपने सपनों के प्रति सच्चे रहें। अगर आप अपने उद्देश्य में ईमानदारी और समर्पण के साथ लगे रहेंगे, तो सफलता अवश्य मिलेगी।
6. प्रश्न: आप तनाव और असफलता का सामना कैसे करते हैं?
उत्तर: हर चुनौती को मैं एक अवसर मानता हूं। योग, ध्यान, और अपने कार्यों की प्राथमिकता तय करना मेरे तनाव को कम करता है। असफलताएं ही हमें जीवन में आगे बढ़ने की नई ऊर्जा और दृष्टिकोण देती हैं।
आने वाली पीढ़ी को संदेश
7. प्रश्न: आज के युवाओं को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: मैं युवाओं से कहना चाहूंगा कि चिकित्सा एक पेशा नहीं, बल्कि मानवता की सेवा का महान अवसर है। इसे व्यवसाय के रूप में न लें। अपने मरीजों के प्रति निस्वार्थ भाव से समर्पित रहें।
ईश्वर ने आपको यह अवसर दिया है कि आप अपने कर्मों से दूसरों का जीवन सुधार सकते हैं। इसे समझें और इसे जीएं।
8. प्रश्न: मानसिक स्वास्थ्य को लेकर युवाओं को आप क्या सलाह देना चाहेंगे?
उत्तर: आज की तेज रफ्तार जिंदगी में मानसिक तनाव आम हो गया है। इसे नजरअंदाज न करें। अपनी भावनाओं को समझें, उन्हें व्यक्त करें, और जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञ से मदद लें। योग, ध्यान, और सकारात्मक जीवनशैली को अपनाएं।
मानवीय संदेश
डॉ. दयाराम स्वामी का जीवन संघर्ष, सेवा, और सफलता की अनूठी कहानी है। उन्होंने न केवल चिकित्सा क्षेत्र में अपने ज्ञान और अनुभव से योगदान दिया, बल्कि अपने मानवीय दृष्टिकोण से समाज को एक नई दिशा दी। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि निस्वार्थ सेवा, अनुशासन, और निरंतर प्रयास ही जीवन को सार्थक बनाते हैं।