इंटरनेशनल मैनिनजिओमा सोसायटी की इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस आयोजित ट्यूमर के इलाज को मिलेगी नई दिशा
इंटरनेशनल मैनिनजिओमा सोसायटी की इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस
ट्यूमर के इलाज को मिलेगी नई दिशा
जयपुर ।
इंटरनेशनल मैनिनजिओमा सोसायटी की इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों ने कहा कि
न्यूरो फाइब्रोमाटोसिस ट्यूमर अगर माता- पिता को हो चुका हो तो, बच्चों में भी इसके विकसित होने की संभावना रहती है। इसे आनुवांशिक ट्यूमर भी कहा जा सकता हैं। आजकल एक जांच जीन टेस्ट से इसका पता लगा सकते है। और चिंता की बात भी नहीं है, क्योंकि मेडिकल मैनेजमेंट से ठीक किया जा सकता है। ये बात मुंबई से आए न्यूरोसर्जन डॉ. वसंत मिश्रा ने कही।
कॉन्फ्रेंस के ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ. हेमंत भारतीय ने बताया कि तीन दिनों से चल रही इस कॉन्फ्रेंस में 100 से अधिक सत्र आयोजित हुए। जिसमें मैनिनजिकमा ट्यूमर बेहतर सर्जिकल, मेडिकल मैनेजमेंट कई पहलुओं पर चर्चा हुई।
सर्जरी के बाद चेहरे पर कोई निशान भी नही रहता
सत्र में एक न्यूरो सर्जन्स ने बताया कि अगर मरीज के ब्रेन में ट्यूमर आगे की तरफ है तो अब तक
उसकी सर्जरी में आंख के पास की हड्डी भी काटनी पड़ती थी। जिससे चेहरे की बनावट कुछ खराब हो सकती है।
लेकिन अब नई तकनीक ऑटिल रिम स्पेयरिंग सिंगल पीस फंटो ऑर्बिटल की होल से चेहरे की सुंदरता को बनाए रखते हुए ट्यूमर हटाया जा सकता है। सर्जरी के बाद मरीज के चेहरे पर किसी तरह का निशान भी नहीं रहता है।
इससे पहले दिन….
विशेषज्ञों ने कहा कि
वर्चुअल रियलिटी तकनीक की मदद से जिस तरह हम समुद्र या अंतरिक्ष में जा सकते हैं, उसी तरह अब इस तकनीक से न्यूरोसर्जन मरीज के दिमाग में जाकर सर्जरी को अंजाम दे सकते हैं।
कांफ्रेंस में डॉ. इयपे चेरियन ने बताया कि इस तकनीक में 192 स्लाइस इंट्राऑपरेटिव सीटी के साथ वीआर ग्लास की मदद ली जाती है। सर्जरी में ही सीटी मशीन मरीज़ के दिमाग की अंदरूनी संरचना की कई तस्वीरें ले लेता है, जिसका एक खास एप्लिकेशन द्वारा वर्चुअल रियलिटी में एक संरचना बना दी जाती है।
दुनिया में केवल तीन से चार देशों में ही यह सर्जरी हो रही है, जिसमें भारत भी शामिल हो गया है।
कांफ्रेंस के दौरान
विश्व के प्रख्यात न्यूरोसर्जन डॉ. मजिद सामी ने डॉ. एसआर धारकर ओरेशन में न्यूरोसर्जरी की शुरुआत से अब तक आए एडवांसमेंट के बारे में संक्षेप में बताया कि उन्होंने न्यूरोसर्जरी तब शुरू की जब सीटी स्कैन, एमआरआई जैसी जांचें भी उपलब्ध नहीं थी और रीढ़ के जरिए दिमाग में हवा भरकर जांच की जाती थी। उन्होंने बताया कि सन 1966 में माइक्रोस्कोप का न्यूरोसर्जरी में इस्तेमाल शुरू होना मेडिकल साइंस में टर्निंग प्वाइंट रहा।