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चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे है न्यू एडवांसमेंट्स। जयपुर में होता है असाध्य और कठिन रोगों का आधुनिकतम और नव सृजित तकनीकों से इलाज ।
एड्स HIV

इन्हें एच आई वी का खतरा ज्यादा भारत में उच्च जोखिम वाले समूहों में यौनकर्मी, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुष, ट्रांसजेंडर व्यक्ति और इंजेक्शन ड्रग उपयोगकर्ता शामिल

इन्हें एच आई वी का खतरा ज्यादा

भारत में उच्च जोखिम वाले समूहों में यौनकर्मी, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुष, ट्रांसजेंडर व्यक्ति और इंजेक्शन ड्रग उपयोगकर्ता शामिल हैं।

आकड़ो के अनुसार 1981 से एड्स से लगभग 4 करोड़ लोग मर चुके हैं, और अभी भी लगभग 3 करोड़ 70 लाख लोग एचआईवी से पीड़ित हैं।

विश्व एड्स दिवस की पूर्व संध्या पर राजस्थान अस्पताल में एक चर्चा का आयोजन किया गया जिसमे बोलते हुए अस्पताल के प्रेसीडेंट डॉ वीरेंद्र सिंह ने कहा कि विश्व एड्स दिवस हर साल 1 दिसंबर को मनाया जाता है और 1988 में इसकी स्थापना के बाद से यह 37वीं बार मनाया जा रहा है। लोग एड्स महामारी के बारे में जागरूकता फैलाने और इस बीमारी से मरने वालों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए विश्व एड्स दिवस मनाते हैं।

अस्पताल के वाइस प्रेसीडेंट डॉ सर्वेश अग्रवाल ने कहा कि यह उन लोगों को याद करने का भी दिन है जो एचआईवी से पीड़ित हैं और लोगों को जांच कराने और अपनी स्थिति जानने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इसके अतिरिक्त, यह अनुसंधान और उपचार के लिए संसाधन जुटाने और एचआईवी/एड्स से प्रभावित लोगों का समर्थन करने वाली नीतियों की वकालत करने का दिन है। इस संबंध में राजस्थान अस्पताल में एक पोस्टर का विमोचन किया गया

कार्यक्रम के संयोजक राजस्थान स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी के पूर्व परियोजना निदेशक जयपुर के त्वचा रोग विषेशज्ञ डॉ दिनेश माथुर ने कहा कि आकड़ो के अनुसार 1981 से एड्स से लगभग 4 करोड़ लोग मर चुके हैं, और अभी भी लगभग 3 करोड़ 70 लाख लोग एचआईवी से पीड़ित हैं। डॉ दिनेश माथुर ने बताया कि उपचार और रोकथाम में हुई प्रगति के बावजूद, एड्स अभी भी हर साल लगभग 20 लाख लोगों की जान लेता है, जिनमें से 250,000 से अधिक बच्चे हैं। हाल के आंकड़ों के अनुसार, भारत में यह संख्या लगभग 23 लाख है, जो भारत को दुनिया में एचआईवी का तीसरा सबसे बड़ा देश बनाता है; एक शोध मे विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2023 तक, वैश्विक स्तर पर एचआईवी के साथ जी रहे लगभग 86% लोग अपनी स्थिति से अवगत हैं, जिसका अर्थ है कि वे जानते हैं कि वे एचआईवी पॉजिटिव हैं; भारत में, एचआईवी के साथ जी रहे लोगों का प्रतिशत जो अपनी स्थिति जानते हैं, लगभग 77% होने का अनुमान है।

डॉ दिनेश माथुर ने कहा कि एड्स के साथ जी रहे लोगो में क्रिप्टोकोकल मेनिन्जाइटिस, – लिम्फोमा और कपोसी सारकोमा जैसे कैंसर भी हो सकते है इसके अलावा एचआईवी अन्य संक्रमणों को बदतर बनाता है, जैसे हेपेटाइटिस सी, हेपेटाइटिस बी और एमपॉक्स।

राजस्थान अस्पताल कि पलमोनरी विभाग कि निदेशक डॉ शीतू सिंह ने कहा कि उपचार के बिना, एचआईवी संक्रमण से पीड़ित लोग गंभीर बीमारियों का भी शिकार हो सकते हैं जैसे: – तपेदिक (टीबी), एड्स रोगियों में अवसर वादी संक्रमण बहुत आम होते है एव टी बी की बीमारी प्रक्रोप सबसे ज्यादा देखा जाता है जिसमे लगभग एक लाख से अधिक लोगो को टी बी और एच आई वी का संक्रमण हर वर्ष देखा जा सकता है संक्रमण धीरे-धीरे प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है, जिसके कारण:- सूजे हुए लिम्फ नोड्स, वजन कम होना, – बुखार, दस्त, खांसी हो सकती है

राजस्थान अस्पताल के जनरल मेडिसिन के डॉ डी के जैन ने कहा कि संक्रमित होने के बाद पहले कुछ हफ्तों में लोगों को लक्षण अनुभव नहीं हो सकते हैं। दूसरों को इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी हो सकती है, तथा बुखार, सिरदर्द, – दाने, गले में खराश आदि हो सकते है

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ करिश्मा गोयल ने कहा कि एड्स के साथ जी रहे लोगो में 25 प्रतिशत से ज्यादा लोगो को साइटोंमेगलो वायरस रेटिनिटिस नामक संक्रमण हो सकता है जिससे कई बार देखने की क्षमता पर भी असर हो सकता है

अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ दीपचंद खंडेलवाल ने बताया की आकड़ो के अनुसार एड्स की वजह से अभी तक दुनिया में 1 करोड़ 65 लाख बच्चे अनाथ हो चुके है

भविष्य की योजनाओ के बारे में प्रकाश डालते हुए डॉ दिनेश माथुर ने बताया लिए अगले साल 2025 तक संयुक्त राष्ट्र संयुक्त कार्यक्रम (यूएनएड्स) द्वारा निर्धारित एचआईवी उपचार लक्ष्यों का एक सेट है: जिसका नाम है 95-95-95 जिसका उद्देश्य 95% एचआईवी स्थिति : एचआईवी से पीड़ित 95% लोग अपनी एचआईवी स्थिति जानने में सक्षम हो 95% एचआईवी से पीड़ित लोगों को निरंतर एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी मिले तथा 95% लोग वायरल दमन प्राप्त कर ले ।

अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मेजर जनरल विजय सारस्वत ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि भारत में एचआईवी परीक्षण बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद, कलंक और जागरूकता की कमी से अभी भी भारत में लोगों के एक महत्वपूर्ण हिस्से को अपनी एचआईवी स्थिति के बारे में जानकारी नहीं है जो कि एक बहुत बड़ी चुनौती है

डॉ दिनेश माथुर

9829061176

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