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एंटीबायोटिक्स प्रतिरोध के संकट से निपटने के लिए जागरूकता जरूरी।

एंटीबायोटिक्स के 20% प्रिस्क्रिप्शन गैर जरूरी हैं

एंटीबायोटिक्स का अधिक उपयोग कैंसर से ज्यादा घातक हो सकता है।

एंटीबायोटिक्स प्रतिरोध के संकट से निपटने के लिए जागरूकता जरूरी।

1928 में सर्जन और इंपीरियल कॉलेज लंदन में ग्लोबल हेल्थ इनोवेशन इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर सर एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने पहली एंटीबायोटिक दवा पेनिसिलीन का आविष्कार किया था। उसके बाद संक्रामक बीमारियों से लाखों लोगों का जीवन बचाया जा चुका है।

लेकिन, अब एंटीबायोटिक्स प्रतिरोधी बैक्टीरिया की संख्या बढ़ती जा रही है। आज लाइलाज संक्रमण से दुनिया में हर साल दस लाख से अधिक मौतें होती हैं। इनके उपचार में कोई एंटीबायोटिक कारगर नहीं है। 2050 तक मौतों की संख्या दस गुना बढ़ने का अनुमान है।

ऐसा मानना है कि यह कैंसर से होने वाली मौतों से अधिक होगी। एंटीबायोटिक्स प्रतिरोध के संकट से निपटने के लिए जागरूकता जरूरी है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा इस वैश्विक खतरे पर चिता व्यक्त करते हुए चर्चा कर रही है।

सामान्य तौर पर एंटीबायोटिक्स प्रिस्क्राइब करना समस्या की जड़ में है। इनका बड़े पैमाने पर कृषि में इस्तेमाल हो रहा है। हमें एंटीबायोटिक्स का अधिक इस्तेमाल रोकने के लिए नया लक्ष्य तय करना चाहिए। 2030 तक बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण बताने वाली डायग्नोसिस के बिना एंटीबायोटिक्स नहीं दिए जाएं।

इसके वास्ते डायग्नोस्टिक टेक्नोलॉजी में निवेश और प्रिस्क्रिप्शन के तरीकों में बुनियादी बदलाव जरूरी है। जिन बीमारियों में तत्काल इलाज जरूरी है, उनमें एंटीबायोटिक्स के लिए छूट दी जा सकती है।

एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग इसलिए हो रहा है क्योंकि डॉक्टर जानकारी के बिना इलाज कर रहे हैं। ये दवाइयां केवल बैक्टीरियल इंफेक्शन में असरकारी हैं। प्रायमरी केयर में इनके 20% प्रिस्क्रिप्शन अनुचित हैं। दुनिया के कुछ देशों में तो मरीजों को प्रिस्क्रिप्शन के बिना एंटीबायोटिक्स मिल सकते हैं।

फ्लेमिंग ने कहा कि क्रांति तो होगी, लेकिन डॉक्टर इसका अत्यधिक उपयोग करेंगे, और चूंकि बैक्टीरिया को जीवित रहना है… इसलिए वे इसके प्रति प्रतिरोधी हो जाएंगे

– डॉ. बिल फ्रैंकलैंड

खतरनाक और दवा प्रतिरोधी इंफेक्शन कहीं भी फैल सकते हैं। क्लीनिक या हेल्थ केयर सिस्टम के बिना बीमारी का टेस्ट होने से मरीजों के लिए अपनी सेहत के बारे में फैसले करना आसान होगा। अकेले साइंस के बूते इस चुनौती को हल नहीं किया जा सकता है। नए और प्रभावी एंटीबायोटिक्स जरूरी हैं। लेकिन, हमें एंटीबायोटिक्स का बुद्धिमानी से इस्तेमाल करना सीखना होगा। मानवता को बढ़ते खतरे से बचाने के लिए वैश्विक आंदोलन की जरूरत है।

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