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बन रही है पराली एवं फलाईऐश से बनी ईंटों से ग्रीन बिल्डिंग, नेट जीरो एनर्जी और नेट जीरो वाटर बिल्डिंगें

राजस्थान जयपुर –

बन रही है पराली एवं फलाईऐश से बनी ईंटों से ग्रीन बिल्डिंग, नेट जीरो एनर्जी और नेट जीरो वाटर बिल्डिंगें

राजस्थान की राजधानी जयपुर में पराली एवं फलाईऐश से बनी ईंटों से ग्रीन बिल्डिंग, नेट जीरो एनर्जी और नेट जीरो वाटर बिल्डिंगें बनाई जा रही है जो आम भवनों से बिल्कुल अलग हैं।

ग्रीन बिल्डिंग विशेषज्ञ आशु गुप्ता ने बताया – इनके निर्माण में मिट्टी की जगह पराली और फ्लाई ऐश से बनी ईंटों और प्लास्टर जिप्सम और गोबर से बनी सामग्री का उपयोग किया जा रहा है। इससे बिल्डिंग सकारात्मक ऊर्जा के साथ ठंडी भी रहती है।

यह ग्रीन बिल्डिंग जयपुर को देश में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी पहचान दिलाने लगी है। एसएमई कंपनियों ने पर्यावरण अनुकूल उत्पाद बनाकर दूसरे देशों में अपना कारोबार को बढ़ा रहे हैं। उत्पाद बनाते समय पानी का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

कंपनियां संयुक्त राष्ट्र से कार्बन क्रेडिट स्कोर खरीद रही हैं। अब ऐसी ग्रीन बिल्डिंग बनाई जा रही हैं, जिनमें साल में सिर्फ 20-30 दिन ही एयर कंडीशनर की जरूरत होगी। एयर कंडीशनर 25-28 डिग्री सेल्सियस तापमान पर चलेंगे। इससे न सिर्फ बिजली का इस्तेमाल कम होगा बल्कि कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा।

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पंकज धारकर के अनुसार – ग्रीन बिल्डिंग में पानी बचाने के लिए पानी रहित यूरिनल लगाए जा रहे हैं। इनसे पानी की ज्यादा बचत होती है। नेट जीरो एनर्जी और वाटर बिल्डिंग सामान्य बिल्डिंग से 2 से 5 प्रतिशत महंगी जरुर बताई जा रही है लेकिन ये बिल्डिंग गर्मियों में ठंडी और सर्दियों में गर्म रहती हैं। सर्दियों में अंदर का तापमान 27-28 डिग्री सेल्सियस रहता है। वाटर हार्वेस्टिंग के साथ ही बारिश के पानी के लिए अलग से स्टोरेज बनाया जा रहा है।

बिल्डिंग एनर्जी बनाने के लिए सोलर प्लांट लगाया जा रहा है। बीएलडीसी तकनीक के पंखे लगाए जा रहे हैं। ये सामान्य पंखों की तुलना में एक तिहाई बिजली खपत करते हैं। ये पंखे 25 वाट के हैं और सामान्य पंखे 75 वाट के हैं। बिल्डिंग में स्ट्रॉ ब्लॉक के साथ डेलाइट और क्रॉस वेंटिलेशन का ध्यान रखा गया है।

फॉल्स सीलिंग में दूसरी साइट से वेस्ट मटीरियल का इस्तेमाल किया गया है। ग्रीन बिल्डिंग को सूर्य की चाल के हिसाब से तैयार किया जा रहा है। सूर्य पूर्व से उगता है और पश्चिम की ओर बढ़ता है। इस दौरान यह अधिक समय तक दक्षिण में रहता है। इसलिए दक्षिण दिशा में गर्मी अधिक रहती है। इस दिशा में शौचालय बनाए जा रहे हैं। उत्तर दिशा में सूर्य की गर्मी कम होती है। लोग इस दिशा में लंबे समय तक बैठ सकते हैं। यहां काम करने की जगह बनाई जा रही है। इस दिशा में खिड़कियां और खुला क्षेत्र छोड़ा जा रहा है।

आर्किटेक्ट अंशुल गुजराती बताती है कि ग्रीन बिल्डिंग के ऑफिस बिल्डिंग की छत में मिट्टी के बर्तन रखे जा रहे हैं। डबल ग्लेज़ ग्लास लगाने से गर्मी अंदर नहीं आती है। फॉल्स सीलिंग में पराली से बने स्ट्रॉ बोर्ड का इस्तेमाल किया जा रहा है। प्लाई और लकड़ी की जगह पर पराली से बने बोर्ड का इस्तेमाल किया जा रहा है।

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