विशेष
चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे है न्यू एडवांसमेंट्स। जयपुर में होता है असाध्य और कठिन रोगों का आधुनिकतम और नव सृजित तकनीकों से इलाज ।
Top Newsहैल्थ

मनुष्य के अमूल्य अंगों को राख क्यों बनाएं  : डॉ देवेंद्र पुरोहित

human organs are priceless । worthwhile precious before and after death also । dr devendra purohit

मनुष्य के अमूल्य अंगों को राख क्यों बनाएं       :            डॉ देवेंद्र पुरोहित

पूर्व प्रोफेसर एवम प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट एस एम एस मेडिकल कॉलेज जयपुर

डॉ देवेंद्र पुरोहित

 

 _” अंगदान, जीवन की नई पहचान।””_ 

दाह संस्कार के बाद राख ही शेष बचती है लेकिन अंगदान के बाद अनेक जीवन बचते और बसते हैं

कुदरत ने मनुष्य के अंगों की रचना की है जो कोई मानव निर्मित नहीं है भगवान की इस रचना को हम राख क्यों बनाए। 

क्यों नहीं हम इन अंगों को किसी के जीवन दान में इस्तेमाल होने देवें।

 सोचो

आपका मनुष्य जीवन जीते जी भी काम आ रहा है तो मरने के बाद भी काम आ रहा है।

_अंगदान करने से हम किसी के जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं और उनके परिवार को एक नई खुशी दे सकते हैं।_

importence of donation of human organs

 *मनुष्य का जीवन और परोपकार*

मनुष्य का जीवन सार्थक तब होता है जब वह अपने जीवन काल में परोपकार के लिए प्रयत्नशील रहता है।

परोपकार के इन कार्यों के लिए हम अक्सर उनकी पुण्यतिथि मनाते हैं।

आजकल तीये की बैठक, शोक संदेश एवम श्रद्धांजलि के संदेशों में उनके परोपकारों के ही गुण गाए जाते हैं आने वाले समय में उनके अंगदानों के गुण भी गाए जाएंगे तो देखो कैसा फील होगा।

आज का हमारा संदेश है कि जो मनुष्य अपने जीवंत काल में परोपकार करता है, वह मरणोपरांत भी अपने अंगदान के माध्यम से परोपकार कर सकता है।

 धन दान करके परोपकार तो कई लोग करते हैं।

लेकिन अंगदान करके किसी का जीवन बचाना सबसे बड़ा परोपकार और पुण्य कर्म है।

अंगदान करने में उसका एक रुपया भी खर्च नहीं होता और न ही उसके परिवारजन को कोई आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है।

 _अगर पुण्यतिथि में उसके इस महान कार्य के लिए उसे याद किया जाता है, तो समाज में अंगदान के प्रति जागरूकता तेजी से फैलेगी।

*हमारे मानव अंग चिता में व्यर्थ जलकर राख बन जाते हैं, जबकि उन्हीं अंगों को हम दान करके किसी का जीवन बचा सकते हैं।*

यह समझना महत्वपूर्ण है कि कौन-कौन से अंग दान किए जा सकते हैं और कब दान किए जा सकते हैं।

कौन-कौन से अंग दान किए जा सकते हैं?

 *हृदय* : हृदय प्रत्यारोपण से किसी के जीवन की रक्षा की जा सकती है।

 *यकृत (लीवर)* : लीवर दान से लीवर फेल्योर के मरीजों को नया जीवन मिल सकता है।

 *गुर्दे (किडनी)* : किडनी प्रत्यारोपण से डायलिसिस पर निर्भर मरीजों को राहत मिलती है।

 *फेफड़े* : फेफड़े दान से श्वास संबंधित बीमारियों से पीड़ित लोगों को मदद मिल सकती है।

 *अग्न्याशय (पैंक्रियास)* : पैनक्रियाज दान से डायबिटीज टाइप 1 के मरीजों को लाभ मिल सकता है।

 *आंखें (कॉर्निया)* : कॉर्निया दान से दृष्टिहीन लोगों को दृष्टि प्राप्त हो सकती है।

 

 *कब दान किए जा सकते हैं?*

जीवित दान : कुछ अंग जैसे कि एक किडनी, लीवर का एक हिस्सा, या पेनक्रियाज का कुछ हिस्सा जीवित रहते हुए भी दान किए जा सकते हैं।

मरणोपरांत दान : मरणोपरांत हार्ट ,दोनों किडनी ,लीवर लंग्स, पेनक्रियाज एवं ईटिस्टाइन का दान करके आठ जनों को जीवन दिया जा सकता है।अंगदान के लिए ब्रेन डेथ के तुरंत बाद चिकित्सकीय प्रक्रिया का पालन किया जाता है ताकि अंगों की गुणवत्ता बनी रहे और उन्हें प्रत्यारोपण के लिए सुरक्षित रखा जा सके।

अंगदान का महत्व समझना और इसे अपनाना न केवल हमारे समाज को अधिक मानवीय और संवेदनशील बनाएगा, बल्कि यह हमारे जीवन को भी सार्थक और यादगार बना देगा।

आइए, हम सभी इस महान परोपकार के कार्य में अपना योगदान दें और एक नई उम्मीद की किरण बनें।

अंगदान को बढ़ावा देने के उपाय

जागरूकता अभियान : टीवी, रेडियो, सोशल मीडिया, और समाचार पत्रों के माध्यम से जागरूकता फैलाना।शिक्षा और प्रशिक्षण : स्कूलों और कॉलेजों में अंगदान के महत्व के बारे में शिक्षा देना।

सरकारी नीतियां : अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां बनाना और प्रक्रिया को सरल बनाना।

चिकित्सा संस्थानों का सहयोग : अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में अंगदान के महत्व पर कार्यक्रम आयोजित करना।

प्रोत्साहन : अंगदान करने वालों के लिए सम्मान और प्रोत्साहन योजनाएं शुरू करना, पुण्य तिथियों पर याद करना।

सामुदायिक आयोजन : स्थानीय समुदायों में अंगदान से संबंधित आयोजन और शिविर लगाना।

संपर्क सूत्र : डॉक्टर देवेंद्र पुरोहित मो 9829190335

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Related Articles

Back to top button