रेरा के संरक्षण में बिल्डरों द्वारा की जा रही जबरदस्त लूटपाट
धड़ल्ले से बिल्डरों द्वारा करोड़ों की आयकर विभाग को चपत
भारत सरकार ने बिल्डर और भूमाफिया की लूटपाट से बचाने के लिए 2016 में रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) एक्ट लागू किया ताकि रेरा की देखरेख में मकान और भूखण्डधारियो के हितों का संरक्षण हो सके ।
खेद की बात है कि लूटपाट रोकने की जिम्मेदारी निभाने वाली रेरा ऑथरिटी आज खुद लूट का बहुत बड़ा अड्डा बनकर रह गई है ।
नतीजतन रेरा के संरक्षण में बिल्डर द्वारा मकान की आस लगाए बैठे लोगों को निर्ममता से निचोड़ा जा रहा है ।
रेरा की लापरवाही और उदासीनता के चलते बिल्डरों की मनमानी देखी जा सकती है और धड़ल्ले से आवास मालिको का तो तेल निकाल ही रहे है, इसके अलावा प्रति वर्ष हजारो करोड़ रुपये का आयकर बचाकर इनकम टैक्स विभाग की आंखों में धूल झोंक रहे है ।
सेवानिवृत आईएएस और पूर्व मुख्य सचिव निहाल चन्द गोयल के जमाने मे बिल्डरों को लूटने का खूब मौका मिला।
रेरा के अंतर्गत करीब 3 हजार प्रोजेक्ट पंजीकृत है । एक योजना में 300 भूखण्ड या मकान भी है तो कुल संख्या बैठती है करीब 10 लाख ।
बाजार में चर्चा है कि एक प्रोजेक्ट को स्वीकृत करने के लिए न्यूनतम 5 से 10 करोड़ रुपये की भेंट चढ़ानी अनिवार्य होती है । भेंट-पूजा के बाद बिल्डरों को, आम और खास को लूटने का लाइसेंस हासिल हो जाता है ।
इस तरह रजिस्ट्रेशन और रेजीडेंसी की स्वीकृति प्रदान कर रेरा के अधिकारियों ने 2500 करोड़ रुपये दक्षिणा के रूप में वसूल लिए ।
उम्मीद थी कि नई रेरा अध्यक्ष वीनू गुप्ता के आने के बाद लूटपाट पर लगाम लगेगी । लेकिन हुआ उल्टा ।
रेरा अब लूट का पर्याय बन गया है । पैसे बटोरना ही इस प्राधिकरण का प्रमुख उद्देश्य है । उपभोक्ताओं के संरक्षण में या उनके हितों की रक्षा के प्रति रेरा की कोई रुचि नही है। वीनू गुप्ता को तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनाव प्रक्रिया के दौरान रेरा का अध्यक्ष नियुक्त किया था ।
आज अकेले जयपुर शहर में करीब पांच सौ रेजिसेंसी या एन्कलेव विकसित हो रहे है । आगरा रोड, सिरसी, गोनेर, गांधी पथ, वाटिका, शिवदासपुरा, भांकरोटा, जयसिंहपुरा, महापुरा, महेंद्र सेज, मदाऊ, मुहाना और पत्रकार कॉलोनी के आसपास अनगिनत गेटेड टाउनशिप विकसित हो रही है ।
वैसे तो कई बिल्डर सक्रिय है ।
लेकिन एक अनुमान से सबसे ज्यादा टाउनशिप गोकुल कृपा ग्रुप की ओर से विकसित की जा रही है । जयपुर में इसके दर्जनों ऑफिस है और दो हजार से अधिक मार्केटिंग के बन्दे है ।
मानसरोवर मेट्रो स्टेशन के नीचे की सैकड़ो फिट सरकारी जमीन पर इस ग्रुप ने नाजायज कब्जा कर रखा है । इस ग्रुप के कर्मचारियों के अलावा किसी के वाहन खड़े करने की अनुमति नही है ।
ज्ञात हुआ है कि बिल्डरों को करीब 7 हजार रुपये प्रति वर्ग गज भूखण्ड और 2500 रुपये प्रति स्क्वायर फुट के हिसाब से फ्लैट या विला पड़ता है ।
सोचो भूखण्ड बेचे जा रहे है 30 से 45 हजार रुपये प्रति वर्ग गज । अर्थात 25 हजार रुपये प्रति वर्ग गज का मुनाफा ।
जबकि इस मुनाफे पर कोई मुनासिब आयकर नही चुकाया जाता है । मोटे तौर पर हर साल बिल्डरों द्वारा आयकर विभाग को 50 हजार करोड़ से भी ज्यादा का चूना लगाया जाता है ।
रेरा का मुख्य कार्य ही यह देखना है कि टाउनशिप में बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है या नही। लेकिन रेरा ने बिल्डरों के सिर पर हाथ रख आशीर्वाद देकर आंखे मूंद रखी है।
पत्रकार कॉलोनी की रूपराज, कासली, अभिमन्यु, आरन, राज आंगन तथा किंग आदि का अवलोकन किया तो ज्ञात हुआ कि इन टाउनशिप का भगवान ही मालिक है कोई सुध लेने वाला नहीं है।
न सड़के पूर्ण हुई है और न ही पार्को का निर्माण किया गया है । रूपराज में तो एंट्रेंस गेट, नाली, पार्क, साफ सफाई आदि का कोई इंतजाम नही है । कर्मचारी के नाम पर एक गार्ड बैठा रखा है । सीसी टीवी कैमरे लगाना बहुत दूर की बात है ।
गौरतलब है कि रेरा और बिल्डरों की मिलीभगत की वजह से रेजीडेंसी में निवास करने वाले बुनियादी सुविधा से वंचित है ।
नोट : अगली क़िस्त में पढ़िए रेजीडेंसी के नाम पर कैसे बटोरे जेडीए के अफसरों ने करोड़ो रूपये । मंत्री से लेकर सन्तरी तक रिश्वत का बंटवारा ।
विशेष : यह विचार श्री महेश झालानी द्वारा व्हाट्स ग्रुप पर प्रस्तुत किए गए है। और मुझे ये भी कहा कि आप इसे जनता की जागरूकता के लिए उनके नाम और फोटो के साथ प्रकाशित कर दें। अतः प्रस्तुत।