सीने में कफ जमने को न करें नजरअंदाज
जयपुर के प्रसिद्ध रेस्पीरेटरी रोग विशेषज्ञ डॉ. राजीव नारंग का कहना है कि सीने में कफ जमा होने से सांस लेने परेशानी होती है।
सर्दी, खांसी, जुकाम होने पर सीने में कफ जमने लग जाता है जो वैसे तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है परंतु इसे नजर अंदाज न करें।
कफ यानी म्युकस शरीर में पाया जाता है, लेकिन जब इसकी मात्रा ज्यादा हो जाती है तब इसे चेस्ट कंजेशन कहा जाता है। छाती में कफ क्रोनिक कंडीशन जैसे सीओपीडी, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा आदि के कारण जम सकता है।
सीने में कफ जमने को नजरअंदाज करने पर सांस लेने में दिक्कत, छाती में जकड़न आदि परेशानियां बढ़ने लगती हैं।
इलाज में अस्थमा और निमोनिया की पहचान- निदान की है अहम भूमिका
अस्थमा – जब फेफड़ों तक हवा को पहुंचाने वाली नलियां सिकुड़ जाती है, तो उसे अस्थमा कहा जाता है। ऐसी परिस्थिति में मरीज को सांस लेने में दिक्कत, खांसने पर घरघराहट की आवाज, सीने में जकड़न जैसी परेशानियां होती हैं। अस्थमा की स्थिति में भी सीने में कफ ज्यादा बनता है।
निमोनिया – निमोनिया फेफड़ों में सूजन वाली बीमारी है। यह बैक्टिरियल या वायरल इंफेक्शन के कारण हो सकती है।
निमोनिया होने पर भी खांसी, सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई होती है। यह सभी परेशानियां सीने में कफ के जमने की वजह से होती हैं।
टीबी- टीबी फेफड़ों का संक्रमण है, जो बैक्टीरिया के कारण होता है।
उन्होंने कहा टीबी होने पर खांसने में दिक्कत, कफ का ज्यादा आना, बुखार, भूख नहीं लगना, फेफड़ों में दर्द, बलगम में खून आना आदि परेशानियां होती हैं।
टीबी का इलाज जरूरी है। अगर समय पर इसका इलाज नहीं हुआ तो यह व्यक्ति की जान भी ले सकता है। सीने में कफ जमने के बचाव अगर आपको 2 हफ्ते से ज्यादा छाती में कफ जमने की दिक्कत है तो बिना देरी किए अच्छे चिकित्सक को दिखाएं।
हां शुरूआती स्तर पर सामान्य खांसी, जुकाम तक तो आप घरेलू उपाय भी अपना सकते हैं।
लेकिन ध्यान रहे 2 हफ्ते से ज्यादा छाती में कफ जमने को नजरअंदाज न करे। अन्यथा परेशानी बढ़ सकती है। इलाज कठिन हो जाता है।
संपर्क सूत्र डॉ. राजीव नारंग मो. 9414250617