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अभिव्यक्तिराजस्थानलाइफ स्टाइलसंपादकीयहैल्थ

मानसिक और शारीरिक रूप से दोनों तरीके से बीमारू और बेकाबू हो रहे बच्चे

लत लगने पर बहुत मुश्किल से मिलता है छुटकारा

*हिसक गेम की लत लगने पर बहुत मुश्किल से मिलता है छुटकारा*
*पब्जी जैसा गेम बर्बाद कर रहे हैं बच्चों का कैरियर* *मानसिक और शारीरिक रूप से दोनों तरीके से बीमारू और बेकाबू हो रहे बच्चे*
आजकल के छोटे-छोटे बच्चों से लेकर युवा पीढ़ी फ्री फायर व पब्जी जैसे ऑनलाइन गेम खेल रहे है तो माता-पिता को सावधान हो जाना चाहिए कि वह बच्चों को इस तरह के खेलों पर रोक लगाएं।
वैसे तो इन गेमों के आदी किसी की सुनते नहीं है विशेषकर मां-बाप की तो बिल्कुल नहीं सुनते।
समय पर बच्चों को नहीं रोका गया तो यह खेल बच्चे को मानसिक रोगी बना सकता है। अलवर में ऐसा ही एक मामला सामने आया है। जिसमें इस गेम की लत से किशोर डिप्रेशन का शिकार हो गया।

14 वर्षीय राहुल (परिवर्तित नाम) पब्जी व फ्री वायर गेम की लत से इस हद तक मानसिक बीमार हो गया कि वह दिन-रात मारधाड़ करने पर उतारू रहता है। इतना ही नहीं, कई बार वह घर से भी भाग चुका है। आज हालत यह है कि उसे घर में रखना मुश्किल हो गया है। इस बालक के माता-पिता मजदूरी करते हैं।
पब जी के साइड इफेक्ट (Side Effects) भी उतने ही ज्यादा हैं। यह बच्चे के शारीरिक-मानसिक विकास पर बुरा असर डालने के साथ उन्हें हिंसक भी बना रहा है।
गत दिनों लखनऊ में पब जी वीडियो गेम की लत से एक नाबालिग बच्चे के हत्यारा बनने का मामला सामने आया था। एक 16 साल के बच्चे ने अपनी मां की गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या सिर्फ इसलिए करी क्योंकि मां ने उसे पबजी खेलने से जबरदस्ती रोका था। हालांकि यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले राजस्थान के नागौर में एक 16 साल के नाबालिग ने पबजी की लत के कारण ही अपने 12 साल के चेचेरे भाई की गला दबाकर हत्या कर दी थी। अब तक ऐसे कई पब्जी और फ्री फायर जैसे गेम के नशेड़ी हिंसक हो गए ऐसे मामले सामने आ चुके हैं।
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लत लगने पर बहुत मुश्किल से मिलता है छुटकारा

यह बच्चों के इंटरनेट एडिक्शन का अत्यधिक गंभीर मामला है। इसमें बच्चे मारपीट पर उतारू, झगड़ालू, अकेलेपन के शिकार और तनावग्रस्त हो जाते हैं। इससे उन्हें मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार से नुकसान झेलना पड़ता है। इस गंदी लत से बच्चे को बाहर निकालने के लिए दवा दी जाती है और काउंसलिंग के साथ परिवार के फुल सपोर्ट की जरूरत होती है। यह आदत संभवतः तीन से चार माह में दूर हो सकती है।
– मनोरोग विशेषज्ञ

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