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वेबसीरीज पंचायत से सुर्खियों में आई पानी की टंकी ग्रामीणों के लिए शो-पीस तीन साल से पड़ी खाली

 भोपाल। आपको चर्चित वेबसीरीज ‘पंचायत’ वेबसीरीज की फुलेरा गांव की टंकी याद होगी, जिसमें सरपंच की बेटी रिंकी और ग्राम सचिव अभिषेक त्रिपाठी की पहली मुलाकात हुई थी। दो युवाओं की निगाहें चार होने का यह दृश्य और इसके साथ ही फुलेरा की टंकी लोगों के मानस पटल पर अंकित हो गई है। वेबसीरीज में यूपी के बलिया जिले के जिस फुलेरा पंचायत का द्श्य दिखाया गया है। असल में वह मप्र में राजधानी भोपाल से सटे सीहोर जिले के महोड़िया गांव का है। द्श्य में बार-बार दिखाई गई पानी की टंकी वास्तव में यहां के ग्रामीणों के लिए एक शो-पीस ही है। यह गांव सीहोर जिला मुख्यालय से महज 10 किमी की दूरी पर है। 3200 की आबादी वाले इस गांव में आज तक नल से पीने के पानी की सप्लाई शुरू नहीं हो सकी है।

तीन साल पहले टंकी बनी, लेकिन नल नहीं लगे। यहां के लोग पानी के लिए भटकते हैं। कई परिवार पानी के लिए टैंकर पर निर्भर है। वहीं कुछ परिवारों में महिलाएं एक किमी दूर स्थित गांव से सिर पर पानी रखकर लाती हैं। यहां बोरवेल और कुआं भी है लेकिन उसमें पानी नहीं है। यदि कुछ में भी तो उसमें खारापन अधिक है, जिसे पीने के लिए उपयोग नहीं कर सकते। नवदुनिया के संवाददाता ने पंचायत के वास्तविक सरपंच और सचिव से बातचीत कर वहां की समस्याओं को जाना।

लगा है जल ही जीवन है का बोर्ड

जब संवाददाता मुख्य सड़क से गांव की सड़क पर पहुंचता है तो वहीं एक बोर्ड लगा है जिसमें लिखा है जल ही जीवन है। लेकिन जब जल ही नहीं तो जीवन कैसा होगा? यह तो गांव वाले ही समझ सकते हैं। गांव के किसान कैलाश मालवीय बताते हैं कि गांव की सबसे बड़ी समस्या पानी है। हमें दूसरे गांव और पानी के टैंकर पर ही आश्रित होना पड़ता है। एक टैंकर का पानी पांच सौ रुपये में आता है। वहीं खेती करने में तो पसीने छूट जाते हैं। असल में इस गांव में पानी नहीं रहता है। यहां की जमीन सूखी है। कई लोगों के घर में कुएं और बोरवेल भी है लेकिन वो अन्य लोगों को पैसे देकर ही पानी देते हैं।

मिलें पंचायत के असली सरपंच से

फुलेरा यानी महोड़िया गांव की असली सरपंच भी महिला है। जिनका नाम इंदर बाई राजमल धनकर हैं। वह बताती हैं कि जल जीवन मिशन योजना के तहत गांव में दो पानी की टंकी बनाई गई है। कुछ पाइप लाइन भी बिछा दी गई है। दो बिजली ट्रांसफार्मर भी लगे हैं। लेकिन काम इतना धीमा है कि तीन साल से गांव में पानी नहीं आया है। इसके लिए हमने पीएचई और कलेक्टर से भी शिकायत की है, लेकिन अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है।

पीने के पानी के लिए दूसरों पर आश्रित

महोड़िया के सचिव हरीश जोशी पिछले सात सालों से यहां पदस्थ हैं। वह बताते हैं कि गांव में पानी की समस्या 10 वर्ष से चली आ रही है। तीन वर्ष पहले यहां जल जीवन मिशन योजना शुरू की थी जिसकी गति धीमी है। मेरे स्तर पर मैं बार-बार ठेकेदार को कह चुका हूं लेकिन काम पूरा नहीं हो रहा है। कुछ ग्रामीणों के पास कुएं और बोरवेल हैं। आबादी वाले क्षेत्र में पानी नहीं आता है यदि आता भी है तो उसमें खारापन अधिक होता है। लोग ऐसे पानी का उपयोग कपड़े और बर्तन धोने में ही करते हैं। पीने के पानी के लिए दूसरों पर आश्रित होना पड़ता है। कई लोग रुपये लेकर पानी देते हैं।

आठवीं तक ही स्कूल, वह भी जर्जर

महोड़िया गांव में दूसरी समस्या बच्चों की पढ़ाई है। यहां आठवीं तक ही स्कूल है। इसका भवन भी जर्जर हालत में है। नौवीं के बाद यहां के विद्यार्थियों को सीहोर या अन्य शहरों में जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है। जबकि गांव में पढ़ाई करने वाले बच्चों की संख्या करीब एक हजार है।

दो टंकियां बन गई हैं। आधे गांव में नल कनेक्शन भी दे दिए हैं। चूंकि गांव में बोरवेल व कुओं से जो पानी मिल रहा है उसमें खारापन अधिक है इसलिए काहरी डैम से पानी लेने के प्रयास किए जा रहे हैं। ग्रामीणों को परेशान नहीं होने देंगे।

– आशीष तिवारी, जिला पंचायत सीईओ, सीहोर

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