सोच बदलनी होगी
*एकाकी जीवन बढ़िया है या परिवारिक जीवन।*
किसी भी व्यक्ति के लिए परिवार का महत्व सबसे अधिक होता है। परिवार साथ रहता है तो बड़ी-बड़ी बाधाओं को भी पार किया जा सकता है। अगर परिवार साथ नहीं है तो छोटी समस्या भी बड़ी हो जाती है। जब सफलता मिलती है, तब परिवार साथ रहता है तो खुशियां और अधिक बढ़ जाती हैं।
सोच बदलनी होगी
*परिवारों को विघटित होने से रोकना पड़ेगा*
आज चीन और अमेरिका जैसे देश इस चिंतन में लग गए हैं कि परिवार के विघटन से शादी में देरी और फिर संतानोत्पत्ति में देरी देश के विकास के लिए घातक है।
परिवार जैविकीय संबंधों पर आधारित एक सामाजिक समूह है जिसमें माता-पिता और उनकी संतानें होती हैं जिनका उद्देश्य अपने सदस्यों के लिए रोटी कपड़ा मकान के अलावा प्रजनन और समाजीकरण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है लेकिन आज आधुनिकीकरण और पाश्चात्य संस्कृति की होड़ में परिवारों का विघटन हो रहा है जो चिंता का विषय है
सोच बदलनी होगी कि पति पत्नी में अलगाव से क्या दुष्परिणाम सामने देखने को मिल रहे हैं मनमुटाव की घटनाएं निरंतर बढ़ रही है जिसका सीधा प्रभाव उनके साथ रह रहे सदस्यों पर पड़ता है परिवार के तनाव ग्रस्त रहने से सबसे पहले परिवार उसके बाद समाज का और फिर देश के विकास में बाधा आती है।
स्त्रियां अब यह नहीं सोच रही हैं उनका असली दायित्व क्या है परिवार की मर्यादा में रहकर जीवन यापन के नियमों को किनारे कर अपनी दुनिया में मग्न रहने लगी हैं।
सोच बदलनी होगी
स्त्री का जब विवाह हो चुका है तो उसका असली खानदान अब वह है जहां पर वह शादी होकर आई है तभी वह परिवार के साथ में सार्थक भूमिका निभा सकेगी और एक खुशहाल और संस्कारित माहौल बना सकेगी। यह दायित्व एक नारी के लिए विशेष है ।
सोच बदलनी होगी
अब चूंकि महिलाओं की भागीदारी केवल गृहस्थ की गाड़ी के ड्राइवर के अलावा कारोबार और धन उपार्जन में भी होने लगी है जिससे उनकी योग्यता और दक्षता में निश्चित रूप से वृद्धि हुई है जिसका दुरुपयोग न कर उन्हे सदुपयोग करना चाहिए ।
संतुलन बनाए रखते हुए परिवार में सार्थक भूमिका निभाकर वो परिवारों को विघटित होने से बचा सकती हैं।
संपर्क सूत्र : डॉक्टर मान सिंह भांवरिया मो 9672777737